पटना, देश के संविधान के द्वारा प्रदत्त आरक्षण को बचाने के लिये दलीय सीमा तोड़कर आरक्षित वर्ग के विधायक एक मंच पर आ गए हैं। विधायकों का आरोप है कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका के जरिए आरक्षण के संविधान प्रदत्त अधिकार में कटौती की कोशिश हो रही है
सरकारी सेवाओं में हासिल आरक्षण को बचाने के सवाल पर अनुसूचित जाति और जनजाति के विधायक दलीय सीमा तोड़कर एक मंच पर आ गए हैं। ये सभी विधायक विधानसभा की लॉबी में इकट्ठा हुए। उन्होने शपथ लेकर कहा कि आरक्षण को बचाने के लिए नेता और पार्टी से ऊपर उठकर हम सब काम करेंगे। उन्होंने कहा कि जल्द ही विधिवत मोर्चा बनेगा। इसका अलग कार्यालय रहेगा।
विधायकों ने कहा कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका के जरिए आरक्षण के संविधान प्रदत्त अधिकार में कटौती की कोशिश हो रही है। हाल के वर्षों में आरक्षण में कटौती के कई प्रयास किए गए हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण भी इसी प्रयास का हिस्सा है।
विधायकों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सेवकों को प्रोन्नति में मिलने वाले आरक्षण को रद्द कर दिया। दुर्भाग्य यह है कि सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कह दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इसलिए केंद्र सरकार आरक्षण को संविधान की नौंवी अनुसूची का अंग बनाए, ताकि इसमें छेड़छाड़ की गुंजाइश खत्म हो।
बैठक में आरक्षित वर्ग के 40 में से 22 विधायक उपस्थित हुये। उन्होंने बताया कि बाहर रहने के कारण कुछ विधायक बैठक में नहीं आ पाये हैं। लेकिन उन सभी विधायकों ने टेलीफोन पर अपनी सहमति दी है। बैठक मे पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी मौजूद थे।
उद्योग मंत्री श्याम रजक ने बताया कि विधायकों ने प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। पत्र पर मांझी के अलावा श्याम रजक, ललन पासवान, रामप्रीत पासवान, शिवचंद्र राम, प्रभुनाथ प्रसाद, रवि ज्योति, शशिभूषण हजारी, निरंजन राम, स्वीटी हेम्ब्रम सहित 22 विधायकों के दस्तखत हैं।