नयी दिल्ली , कांग्रेस सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने मोदी सरकार पर दायित्वों का समय पर निर्वहन करने में असफल रहने का आरोप लगाते हुए कहा है कि कोरोना महामारी का प्रसार रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान वह असंवेदनशील तरीके से पेश आयी और लोगों की समस्याओं का निराकरण करने में विफल रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में शुक्रवार को यहां हुई 22 विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने इस दौरान समय पर कोई कदम नहीं उठाया और पीडित लोगों की समस्या के समाधान के लिए ठोस उपाय नहीं किए। उन्होंने कहा कि कोरोना के विरुद्ध लडाई में श्रेय लेने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए थी और सबको साथ लेकर चलते हुए इस महामारी को रोकने के कदम उठाने चाहिए थे लेकिन उसने किसी की परवाह नहीं की और इस लडाई में असफल रही।
बैठक में श्रीमती गांधी के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, ए के एंटनी, गुलामनबी आजाद, अधीर रंजन चौधरी, मल्लिकार्जुन खडगे, के सी वेणुगोपाल तथा पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री तथा जनता दल एस के नेता एच डी देवेगौडा, तृणमूल कांग्रेस की नेता तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, इसी पार्टी के नेता डेरेक ओब्राइन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार तथा प्रफुल्ल पटेल, शिव सेना के नेता तथा महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे और संजय राउत, द्रविड मुन्नेत्र कषगम के टी स्टालिन, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी, झारखंड मुक्ति माेर्चा के नेता तथा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा, राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी, राष्ट्रीय जनता दल के तेजेश्वर यादव और मनोज झा, रेवोलेशनरी सोशलिस्ट पार्टी के एन के प्रेमचंद्रन, आरएलएसपी के उपेंद्र कुशवाह तथा एआईयूडीएफ के बदुरुद्दीन अजमल सहित 22 दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया।
इन दलों के नेताओं ने कहा कि सरकार ने लॉकडाउन से निपटने के लिए जो भी कदम उठाए हैं वे सोचे समझे बिना उठाए गये जिसके कारण लोगों को इसका कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए का जो आर्थिक पैकैज घोषित किया उसमें भी आम आदमी के लिए कुछ नहीं किया गया है। उनका कहना था कि सरकार को इस आपदा के समय सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ विचार विमर्श करना चाहिए था लेकिन उसने जो चाहा वह कदम उठाया और इसी का परिणाम है कि लोग परेशान हैं।
विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार मनमानी करती है जिसके कारण लोगों को ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ता है। केंद्र सरकार कोई भी बडा फैसला लेने से पहले यदि विपक्षी दलों की सलाह ले और इस संबंध में राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर काम करे तो लोगों की समस्या का समाधान आसान होता लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि यह सरकार किसी की नहीं सुनती और लोकतंत्र का मजह दिखावा करती है जबकि सारे फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से ही लिए जा रहे हैं।
उन्होंने केंद्र सरकार के समक्ष सामूहिक रूप से 11 मांगे रखते हुए कहा कि बैठक में शामिल विपक्ष दल देश की 60 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए केंद्र सरकार को उनकी बात पर गौर करना चाहिए। इन दलों ने कहा कि सबसे पहले सरकार को गरीबों के खाते में 7500 रुपए प्रति माह की दर से डालने चाहिए और हर जरूरतमंद आदमी के लिए छह माह तक दस किलोग्राम अनाज की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ ही मनरेगा के कार्य दिवस बढाकर 200 करनी चाहिए।
विपक्षी दलों के नेताओं ने काम नहीं होने के अभाव में घर जाने के इच्छुक सभी प्रवासी श्रमिकों के लिए परिवहन की व्यवस्था करनी चाहिए और विदेशों में जो छात्र फंसे हुए उन्हें वापस लाने का करना चाहिए। सरकार ने श्रमिकों के लिए कानून में जो बदलाव किए हैं उन्हें तत्काल वापस लिया जाना चाहिए और श्रमिकों को विदेशी कंपनियों का गुलाम बनाने के प्रयास नहीं करने चाहिए।
उन्होंने राज्य सरकारों को कोरोना से लडने के लिए सक्षम बनाने के वास्ते केंद्र सरकार को उनके बकाया का भुगतान करना चाहिए और समर्थन मूल्य पर रबी की फसलों की खरीद की जानी चाहिए। सरकार किसानों को बीज तथा उर्वरक उपलब्ध कराए और खरीफ की फसलों की बुआई के लिए उन्हें पूरी मदद दे। इसके सािा ही उन्होंने सरकार से स्पष्ट आर्थिक नीति पेश करने और गरीबों के हितों पर ध्यान देने का आग्रह किया है।
विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार मनमानी करती है जिसके कारण लोगों को ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ता है। केंद्र सरकार कोई भी बडा फैसला लेने से पहले यदि विपक्षी दलों की सलाह ले और इस संबंध में राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर काम करे तो लोगों की समस्या का समाधान आसान होता लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि यह सरकार किसी की नहीं सुनती और लोकतंत्र का मजह दिखावा करती है जबकि सारे फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से ही लिए जा रहे हैं।
उन्होंने केंद्र सरकार के समक्ष सामूहिक रूप से 11 मांगे रखते हुए कहा कि बैठक में शामिल विपक्ष दल देश की 60 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए केंद्र सरकार को उनकी बात पर गौर करना चाहिए। इन दलों ने कहा कि सबसे पहले सरकार को गरीबों के खाते में 7500 रुपए प्रति माह की दर से डालने चाहिए और हर जरूरतमंद आदमी के लिए छह माह तक दस किलोग्राम अनाज की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ ही मनरेगा के कार्य दिवस बढाकर 200 करनी चाहिए।
विपक्षी दलों के नेताओं ने काम नहीं होने के अभाव में घर जाने के इच्छुक सभी प्रवासी श्रमिकों के लिए परिवहन की व्यवस्था करनी चाहिए और विदेशों में जो छात्र फंसे हुए उन्हें वापस लाने का करना चाहिए। सरकार ने श्रमिकों के लिए कानून में जो बदलाव किए हैं उन्हें तत्काल वापस लिया जाना चाहिए और श्रमिकों को विदेशी कंपनियों का गुलाम बनाने के प्रयास नहीं करने चाहिए।
उन्होंने राज्य सरकारों को कोरोना से लडने के लिए सक्षम बनाने के वास्ते केंद्र सरकार को उनके बकाया का भुगतान करना चाहिए और समर्थन मूल्य पर रबी की फसलों की खरीद की जानी चाहिए। सरकार किसानों को बीज तथा उर्वरक उपलब्ध कराए और खरीफ की फसलों की बुआई के लिए उन्हें पूरी मदद दे। इसके सािा ही उन्होंने सरकार से स्पष्ट आर्थिक नीति पेश करने और गरीबों के हितों पर ध्यान देने का आग्रह किया है।