लखनऊ , उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में नये निवेश तथा पूर्व में स्थापित औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा कारखानों के लिये श्रम नियमों में तीन साल के लिये संशोधन किये जाने के बाद राज्य में विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
आधिकारिक सूत्रों ने सोमवार को यहां बताया कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में तीन साल तक के लिए कई श्रम कानूनों को निलंबित करते हुए अध्यादेश को अंतिम रूप दे दिया है। यह राज्य में मौजूदा और नई औद्योगिक इकाइयों को मदद करने का एक प्रयास है।
उन्होंने कहा कि सरकार की नजर वैश्विक महामारी के चलते 100 से अधिक उद्योग चाइना से अपने कारोबार को अन्यत्र शिफ्ट करना चाहते है। योगी आदित्यनाथ की सरकार उसमें अधिक से अधिक उद्योगों को उत्तर प्रदेश के स्थापित करने के एड़ी चोटी का जोर लगाये है। उद्योगाें को राज्य में निवेश और अपने उद्योगों को शुरू करने में कोई दिक्कत न आये इसके लिये श्रम कानूनों में अगले तीन सालों तक के लिये कई बदलाव किये है।
उन्होंने कहा कि राज्य में नये निवेश, नये उद्योग तथा लॉकडाउन के चलते बंद पड़े कारखानों को चालू कराने के लिये सरकार ने कमेटी का गठन किया है। कमेटी विदेशी राजदूतों के माध्यम से नये निवेश के लिये सम्पर्क करने में जुटी है। योगी सरकार की मुख्य चिंता 20 लाख प्रवासी मजदूरों को राज्य में रोजगार देने की भी है। इसके लिये तमाम प्रबंध किये जा रहे है।
श्रम कानूनों में बदलाव के प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी(सपा), बहुजन समाज पार्टी(बसपा), कांग्रेस राष्ट्रीय लोक दल, कम्युनिष्ट पाटी समेत कई संगठनों ने इसका विरोध किया है।
राज्य में नए निवेश और पूर्व में स्थापित औद्योगिक प्रतिष्ठानों व कारखानों के लिए श्रम नियमों में 1000 दिनों के लिए अस्थायी छूट दी गई है। इस बदलाव में श्रमिकों को समय से वेतन और उनके काम के घंटे आदि भी तय किए गए हैं। कारोबारियों के लिए ‘साथी पोर्टल’ लॉन्च किया गया है। विपक्षी दलों के नेता सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे मजदूरों के खिलाफ बता रहे हैं.
समाजवादी पार्टी(सपा)अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में दिये अपने बयान में कहा है कि भाजपा सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा मज़दूरों को शोषण से बचाने वाले ‘श्रम-क़ानून’ के अधिकांश प्रावधानों को तीन साल के लिए स्थगित कर दिया है। यह बेहद आपत्तिजनक व अमानवीय है। श्रमिकों को संरक्षण न दे पाने वाली ग़रीब विरोधी सरकार को इस्तीफा दे देना चाहिये।
बहुजन समाज पार्टी(बसपा) अध्यक्ष मायावती ने कहा कि कोरोना प्रकोप में श्रमिकों का सबसे ज्यादा बुरा हाल है। दूसरी ओ उनसे आठ की बजाए 12 घंटे काम लेने की तैयारी चल ही है। सरकार शोषणकारी व्यवस्था पुनः देश में लागू करना चाहती है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। श्रम कानून में बदलाव देश की रीढ़ श्रमिकों के व्यापक हित में होना चाहिये ना कि कभी भी उनके अहित में।
उन्होंने कहा कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने श्रमिकों के लिए प्रतिदिन आठ घंटे से अधिक काम लेने पर ओवरटाइम देने की युगपरिवर्तनकारी काम किया था। वही उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि यह अध्यादेश मजदूरों और राज्य के हित में है। उन्होंने सपा, बसपा और कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुये कहा कि मगरमच्छ के आंसू बहाने वालों को नहीं पता है कि हमने श्रमिकों के सभी हितों को ध्यान में रखते हुए निवेश के नए रास्ते खोले हैं। सरकार ने नए निवेश और पुनर्जीवित होने वाले उद्योग, दोनों की संभावनाओं को खोल दिया है। सरकार चाहती है कि प्रदेश में लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को यहां रोजगार मिले और यही वजह है कि हम यह अध्यादेश लाए हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार मजदूरों की मदद करने के लिए तैयार नहीं है। उनके परिवार को कोई सुरक्षा कवच नहीं दे रही है। उनके अधिकारों को कुचलने के लिए कानून बनाया है। मजदूर देश के निर्माता हैं वे किसे के बंधक नहीं हैं।
भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा है कि मजदूर संघ राज्य सरकारों के इस कदम का समर्थन नहीं करता और इसके विरोध के लिए हम कार्ययोजना बनाएंगे। उन्होंने कहा कि भारत में वैसे ही श्रम कानूनों का पालन कड़ाई से नहीं होता और जो हैं भी उन्हें भी निलंबित या खत्म किया जा रहा है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने योगी सरकार द्वारा मजदूरों के काम के घंटे मौजूदा आठ से बढ़ा कर 12 घंटे करने के फैसले की कड़ी निंदा की है और इसे वापस लेने की मांग की है। राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार को यहां कहा है कि राज्य में श्रमिक कानूनों को तीन साल तक स्थगित करने के बाद कोरोना संकट की आड़ में मेहनतकश वर्ग पर योगी सरकार का एक और बड़ा हमला है। इन फैसलों से सरकार ने यूपी को एक तरह से दास प्रथा युग में लौटा देने का काम किया है। यह शिकागो के अमर शहीदों, जिन्होंने आठ घंटे काम की अवधि तय करने के लिए शहादतें दीं, का घोर अपमान है और दुनिया भर में स्थापित श्रम नियमों का उल्लंघन है। यदि इसे वापस नहीं लिया गया, तो इसका कड़ा विरोध होगा।