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प्रतीकों की राजनीति से नहीं होगा बहुजन समाज का भला

देश 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, इस मौके पर केंद्र की भाजपा सरकार प्रतीकों की राजनीति के सहारे गरीबी, बेरोजगारी, समाज में व्याप्त जातीय विद्वेष जैसे ज्वलंत मुद्दों को दरकिनार करने के प्रयास में जुटी है, राजस्थान के जालौर में उच्च जाति के शिक्षकों के घड़े से पानी पीने के कारण एक दलित छात्र की मनुवादी मानसिकता से ग्रसित शिक्षक ने बेदर्दी से पिटाई की जिससे उसकी मौत हो गयी, लेकिन इस गंभीर मामले में भी सरकार की तरफ से आरोपी के खिलाफ कोई सख्त पहल ना करने से साफ़ है कि मनुवादी व्यवस्था की पोषक सरकारें देश में जातिवादी व्यवस्था बनाये रखना चाहती हैं और केवल दिखावे के तौर पर राजनीतिक दल ने पहले दलित और अब आदिवासी समाज का राष्ट्रपति बनाया, लेकिन पिछले पांच साल दलित समाज का राष्ट्रपति रहा,पर इससे दलित समाज का कोई भला नहीं हुआ और यही स्थिति कमोवेश आदिवासी समाज की भी रहने वाली है। यदि दलित या आदिवासी राष्ट्रपति बनने से देश में दलितों और वंचितों का शोषण या उत्पीडन बंद हो जाता तो राजस्थान के जालौर जिले में नौ साल के किसी दलित छात्र को शिक्षक के घड़े से पानी पीने के कारण मनुवादी मानसिकता से ग्रसित शिक्षक द्वारा उसकी निर्मंमता से हत्या ना कर दी गयी होती। दलितों व आदिवासियों का वोट पाने की खातिर राजनीतिक दल इन वर्गों से राष्ट्रपति व केंद्र तथा तमाम राज्यों में मंत्री तो बना देंती है, लेकिन जातिवाद का जहर ख़त्म करने के लिए कोई भी अभियान नहीं चलाती, यहाँ तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर 15 अगस्त को लाल किले से इस घटना की निंदा तो दूर इसका जिक्र तक नहीं करते हैं, जबकि ये घटना 12 अगस्त की है।

देश को आजाद हुए भले ही 75 साल हो गए हों पर वंचित और शोषित समाज की समस्याएँ आज भी कमोवेश जस की तस हैं। देश की 85 फ़ीसदी आबादी बहुजन समाज के लोगों की है, जिनमें 6743 जातियों में बंटा दलित और पिछड़ा वर्ग भी शामिल है, इसके अलावा अल्पसंख्यक समाज भी बहुजन समाज का हिस्सा है। इन वर्गों की स्थिति लगभग एक जैसी है, लेकिन इनके अधिकार दिलाने की लड़ाई इस समय कोई भी सियासी दल लड़ता नहीं दिख रहा है। महाकुम्भ के आयोजन के दौरान प्रधानमंत्री जी बाल्मीकि समाज की महिलाओं के पैर पखारकर यह सन्देश देने की कोशिश करते हैं कि उनकी सरकार में दलितों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जायेगा, लेकिन यूपी के हाथरस में दलित समाज की युवती के साथ सामूहिक दुराचार व हत्या के मामले में वे कुछ भी नहीं बोलते, केवल प्रतीकात्मक तौर पर दलितों के पैर धोकर या इस वर्ग के राष्ट्रपति या मंत्री आदि बनाकर इस वर्ग का वोट पाने की कवायद के आलावा राजनीतिक दल इस वर्ग के उत्थान या उत्पीडन रोकने के लिए कुछ भी करने वाली नहीं है। बहुजन नायक कांशीराम जी ने सदियों से शोषित और वंचित बहुजन समाज को उनके अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया और एक सियासी दल बहुजन समाज पार्टी का गठन करके इन वर्गों को इनका खोया सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए सामाजिक परिवर्तन के लिए आन्दोलन चलाया। बहुजन नायक ने आन्दोलन चलाकर बहुजन समाज के लोगों को ना सिर्फ उनका खोया हुआ सम्मान दिलाया बल्कि उनमें स्वाभिमान भी जगाया। सामाजिक और राजनीतिक तौर पर जागरूक हुए बहुजन समाज के सहयोग से कांशीराम जी ने देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में सपा के सहयोग से अपनी सरकार बनायीं और वंचित वर्ग को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए पूरे देश में आर्थिक मुक्ति आन्दोलन चलाया, लेकिन इन वर्गों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उन्हें बहुत कम समय मिला, लेकिन इस दौरान घड़े से पानी पीने से रोकने जैसी घटनाओं पर पूरी तरह से अंकुश लगा और बहुजन समाज की सरकार है, इसका एहसास भी वंचित समाज के आखिरी व्यक्ति को हुआ और उत्पीड़क वर्ग को भी इसका एहसास हो गया कि जाति के आधार पर उत्पीडन करने या कमजोर वर्ग पर अत्याचार करने पर उनके खिलाफ कानून के तहत सख्त कार्रवाई होगी। इसी का नतीजा रहा कि भाजपा से गठबंधन के बाद भी बसपा की अल्पकाल की सरकार में वंचित और शोषित समाज के साथ होने वाला अन्याय और अत्याचार लगभग रुक गया था।

कांशीराम जी के परिनिर्वाण के साथ ही बहुजनों के लिए चलाया जा रहा सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति आन्दोलन जो उनके रहते यूपी के अलावा धीरे-धीरे पूरे देश के सभी राज्यों में जोर पकड़ रहा था, वह रुक गया और मायावती जी के सर्वसमाज को जोड़ने के लिए चलाया गया सोशल इंजीयरिंग का फार्मूला भी फ्लॉप हो गया। देश और यूपी में बहुजन समाज में खासतौर पर दलितों और पिछड़ों की कोई मजबूत सियासी आवाज ना होने के कारण इस वर्ग के मौलिक अधिकारों को दिलाने के लिए कोई बड़ा आन्दोलन नहीं खड़ा हो पा रहा है। सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का मानना है कि जबतक दलित और पिछड़ा वर्ग के लोग सत्ता की चाबी अपने हाथों में नहीं लेंगे तबतक हजारों साल से जाति के आधार पर हो रहे उत्पीडन नहीं रुकेंगे। उनका कहना है कि इस तरह की ह्रदय विदारक घटना के लिए किसी एक राजनीतिक दल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, बहुजन समाज में खास तौर पर दलितों के खिलाफ मनुवादी मानसिकता के लोगों द्वारा हजारों साल से उत्पीडन किया जा रहा है और लगभग सभी दलों की सरकार के दौरान दलित उत्पीडन की घटनाएँ होती रहीं हैं। रोहित वेमुला और ऊना कांड जैसी घटनाएँ भी दलित उत्पीडन का बड़ा उदहारण है, इस तरह की घटनाओं पर तभी अंकुश लगेगा जब दलितों और पिछड़ा वर्ग के सहयोग से उनके विचारधारा को मानने वाले दलों की सरकारें होंगी। बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने कहा है कि सत्ता की चाबी वह मास्टर चाबी है, जिससे शोषित-वंचित समाज की तरक्की और सफलता के सारे दरवाजे खुलते हैं, सत्ता हासिल करके ही बहुजन समाज के लोग जाति के आधार पर भेदभाव जैसी हजारों साल पुरानी कुरीतियों को ख़त्म कर सकते हैं। ऐसे में बहुजन समाज के लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी विचारधारा वाली पार्टी की सरकार बनाये और उस सरकार पर नजर भी रखे कि कहीं उनके हित की रक्षा करने की बात करने वाले नेता अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए मनुवादी ताकतों से समझौता न कर सकें।

 कमल जयंत