न्यायपालिका की कड़वी सच्चाई को राष्ट्रपति ने स्वीकारा, संबोधन मे उभरी पीड़ा

नयी दिल्ली, न्यायपालिका की कड़वी सच्चाई को आज  राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने अपने संबोधन मे स्वीकार किया।

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने हर किसी के लिए न्याय को सुलभ बनाने की वकालत करते हुए  कहा कि अब भी समाज का एक बड़ा तबका है जिसकी पहुंच से न्याय दूर है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

राष्ट्रपति कोविंद ने संविधान की 70वीं वर्षगांठ पर उच्चतम न्यायालय के नये प्रशासनिक भवन परिसर स्थित सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि उच्चतम न्यायालय ने न्याय की पहुंच आम लोगों तक सुलभ बनाने के लिए कई प्रयास किये हैं, लेकिन समाज के एक बड़े तबके की पहुंच आज भी न्याय तक नहीं है।

राष्ट्रपति ने सभी के लिए न्याय को सुलभ बनाने की वकालत करते हुए कहा कि न्याय पाने में आने वाली लागत काफी अधिक होती है, और ऐसी स्थिति में न्याय सुलभ बनाने के लिए मुफ्त विधिक सेवा उपलब्ध कराने का प्रावधान कारगर उपाय है।
राष्ट्रपति ने संविधान को भारत का धर्मग्रंथ करार देते हुए कहा कि इसकी व्याख्या बहुत ही संवेदनशीलता एवं निपुणता से की जानी चाहिए।

उच्चतम न्यायालय को संविधान का अंतिम व्याख्याकर्ता करार देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका अभिभावक की है। इन सत्तर वर्षों में न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभायी है।

इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि संविधान के माध्यम से देश में सामाजिक क्रांति आई है।

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