यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अयोध्या में दलित परिवार के साथ भोजन किया, निश्चित तौर पर इसके पीछे उनकी मंशा यही रही होगी कि जाति के आधार पर उत्पीडित किये गए इन वर्गों के प्रति सवर्ण समाज के लोगों में सम्मान का भाव पैदा हो और सिर्फ जाति के आधार पर दलितों का उत्पीड़न ना किया जा सके, लेकिन इन वर्गों का उत्पीड़न रोकने के लिए इन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा। इन वर्गों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री जी को इस बात की पहल करनी होगी कि भारतीय संविधान में प्रदत्त सुविधाएँ और अधिकार दिए जाएँ। राज्य में सरकारी नौकरियों में रोक लगी हुई है, आउटसोर्सिंग के जरिये की जा रही भर्तियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं है, जिसकी वजह से इन वर्ग के लोगों को नौकरियां नहीं मिल रहीं हैं, सरकारें अधिकांश विभागों को निजी क्षेत्रों को बेंच रही है, निजी क्षेत्रों में पहले से ही आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में इन वर्ग के शिक्षित युवाओं के सामने जीविकोपर्जन का संकट गहराता जा रहा है। राज्य सरकार को इन वर्गों को रोजगार मुहैया कराने के लिए भी गंभीरता से सोचना चाहिए।
सियासी दल और उनके बड़े नेता दलितों के घर भोजन करके, उनके यहाँ रात्रि विश्राम करके और उनके पैर पखार के लगातार ये सन्देश दे रहे हैं कि उनकी पार्टी या उनकी सरकार जाति के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं करती, इन सियासी दलों और इनके नेताओं की मंशा भी यही है, ऐसा माना जा सकता है, लेकिन इन दलों जिसमें खासतौर पर सत्ताधारी दल की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह इन वर्गों के बच्चों की शिक्षा के साथ ही युवाओं को नौकरी आदि का संविधान प्रदत्त उनका अधिकार उन्हें दिलाएं। यूपी में छात्र-छात्राओं को छात्रवृति नहीं मिल रही है, जिसकी वजह से गरीबी का दंश झेल रहे इन वर्ग के बच्चों को बीच में ही अपनी शिक्षा छोड़नी पद रही है, उच्च और तकनीकी शिक्षा पाने के लिए इन वर्ग के बच्चों को पहले सरकार से शुल्क प्रतिपूर्ति का भरोसा रहता था, सरकार के निर्देश पर उच्च शिक्षण और तकनीकी शिक्षण संसथान सत्र की शुरुआत में ही इन वर्ग के गरीब बच्चों का जीरो फीस पर दाखिला ले लेते थे, जिसकी वजह से इन वर्ग के बच्चों की उच्च व तकनीकी शिक्षा हासिल करने का सपना पूरा हो जाता था, लेकिन इस समय जीरो फीस पर दाखिला नहीं लिया जा रहा है, जिसकी वजह से इन वर्ग के लाखों गरीब बच्चे उच्च व तकनीकी शिक्षा पाने से वंचित रह जा रहे हैं। उच्च और तकनीकी शिक्षा हासिल किये बगैर इस वर्ग के छात्र-छात्राएं आगे डॉक्टर- इंजिनियर नहीं बन पाएंगे और ना ही ये उच्च प्रशासनिक सेवाओं में आ सकेंगे।
वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कांग्रेस के राहुल गाँधी से लेकर भाजपा के तमाम शीर्ष नेता समय-समय पर दलितों के घर जाकर भोजन करते रहे हैं, लेकिन केवल उनके यहाँ भोजन करने से दलित समाज की समस्याएं दूर नहीं होंगी। उनका कहना है कि इससे सरकार में उच्च पदों पर बैठे नेताओं की सामंती और मनुवादी सोंच भी झलकती है, उनका ये भी कहना है कि जिस दलित के घर ये नेता भोजन करने जाते हैं, क्या उन्हें भोजन के लिए उस दलित परिवार से आमंत्रित किया गया था, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कुम्भ मेले के दौरान सफाई कार्य में लगे लोगों का पैर पखारा, लेकिन इसके बावजूद दलित उत्पीड़न की घटनाएँ कम नहीं हुई और जाति के आधार पर आज भी उनका उत्पीड़न जारी है। कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि केवल प्रचार पाने की खातिर सियासी दलों के नेता दलितों के घर भोजन करने जाते हैं और इसका मीडिया व्यापक प्रचार करता है ताकि इस चुनाव के दौरान इस समाज का वोट उनके दल को मिल सके। यदि वास्तव में दलितों की समस्याओं का निस्तारण मकसद होता तो सत्ताधारी दल इनकी बेरोजगारी, शिक्षा और नौकरी की समस्या का समाधान करने के लिए पहल करते।
एक अनुमान के मुताबिक यूपी में लगभग 11 लाख सरकारी पद खाली हैं, इन्हें भरने की प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही इन पदों पर नियमों के मुताबिक आरक्षण की व्यवस्था भी लागू की जाए और इसे पूरा भी किया जाए, ताकि दलित वर्ग के लोगों के साथ अरक्षित वर्ग के सभी लोगों को इसका वास्तविक लाभ मिल सके। मौजूदा समय में शिक्षक भर्ती में भी दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित लगभग बारह हजार पदों पर सामान्य वर्ग के अभ्यथियों को भर्ती कर दिया गया, इस मुद्दे को लेकर दलित और पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थी लम्बे समय तक कांशीराम स्मारक स्थल पर धरना देते रहे, लेकिन उन्हें अभीतक न्याय नहीं मिला। इतना ही नहीं लखनऊ के प्रतिष्ठित संसथान एसजीपीजीआई में दलित और पिछड़ा वर्ग के प्रोफेसर भी नियुक्तियों में रोस्टर लागू करने की मांग उचित फोरम पर उठा रहे हैं। राज्य और केंद्र दोनों ही जगह भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है, राज्यसभा से प्रोन्नति में आरक्षण का विधेयक बहुत पहले ही पारित हो चुका है, ऐसे में केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह लोकसभा में भी ये बिल पास कराके सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था लागू करे, ताकि दलित वर्ग के कार्मिकों को न्याय मिल सके।
कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)।