यूपी में हुए विधानसभा के चुनाव में बसपा का अबतक का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा है, राज्य की सत्ता की चार बार बागडोर संभाल चुकीं मायावती जी के नेतृत्व में हुए इस चुनाव में पार्टी को महज एक सीट पाकर ही संतोष करना पड़ा।
उत्तर प्रदेश में इस बीच पार्टी का जनाधार बहुत ही तेजी से गिरा है, इसको लेकर पार्टी के अन्दर ही बसपा के मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ भी आवाज उठने लगी है, अब लोग खुलकर मायावती जी के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं और इस करारी हार के लिए मायावती जी के साथ ही उनके भाई-भतीजे को भी निशाना बना रहे हैं, सोशल मीडिया पर भी लोग बसपा नेतृत्व के खिलाफ खुलकर आलोचना कर रहे हैं, कुछेक लोगों ने तो अपने नाम को गोपनीय रखते हुए मायावती जी के भतीजे को राष्ट्रीय समन्वयक और भाई आकाश आनंद को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाये जाने पर अपनी कड़ी आपत्ति जत्ताते हुए लिखा है कि वह बहुजन नायक कांशीराम जी के अनुयायी हैं। कांशीराम जी ही स्वतंत्र भारत के एक मात्र पूर्ण राजनीतिक विचारक हैं। कांशीराम जी ने बहुजन समाज को जागरूक करने के लिए अपना परिवार छोड़ा और हालाँकि मायावती जी ने भी परिवार को पार्टी से दूर रखने की बात कही, लेकिन वह अपनी बात पर ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकीं, उन्होंने पार्टी में भाई और भतीजे को महत्वपूर्ण पदों पर स्थापित किया इसके साथ ही बहुजन नायक द्वारा स्थापित बसपा जिसका मकसद मनुवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ना था, मायावती जी ने पार्टी के मूल मकसद को बदलकर बहुजन से सर्वजन की बात करनी शुरू कर दी, जिसका नतीजा ये रहा कि सर्वसमाज बसपा से जुड़ा नहीं और बहुजन समाज ने पार्टी में अपनी उपेक्षा के चलते बसपा से किनारा कर लिया, जिसका नतीजा इस चुनाव में सामने आया है।
सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा के मुताबिक 11 मार्च को सुबह बहन जी की हार के कारणों की जो समीक्षा आई। उस समीक्षा से ये समझ आया कि वे अब जमीन की सच्चाई से कोसों दूर हैं और आत्ममुग्ध हैं। 2022 के चुनाव की हार के लिए केवल और केवल बहन जी जिम्मेदार हैं।
बसपा चुनाव उसी दिन हार गयी थी जब 2019 के आखिर में हुए राज्यसभा चुनाव में बहन जी ने कहा था कि “सपा को हराने के लिए भले बीजेपी को समर्थन करना पड़े, हम करेंगे”। इसके बाद चुनाव के दौरान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बसपा को मुख्य मुकाबले में बताया तो मायावती जी ने उनके प्रति आभार जताया, ये बात भी बहुजन समाज के लोगों को अच्छी नहीं लगी और जो बहुजन समाज के लोग यूपी में बीजेपी की सरकार नहीं चाहते थे उसके मन में इस एक बयान से ये बात बैठ गई कि अगर भाजपा की पर्याप्त सीट नहीं आतीं हैं तो सरकार बनाने में बसपा बीजेपी की मदद करेगी। जिसका ये सन्देश गया कि बसपा पूरी तरह से भाजपा के साथ खड़ी है। इसके ठीक उलट बहन जी ने बहुत सधे शब्दों में बीजेपी की आलोचना की, उनके ट्वीट की भाषा पढने से लगेगा कि जो व्यक्ति राजनीति का ‘र’ नहीं जानता उसे भी लगेगा कि ये किसी विपक्षी नेता की भाषा नहीं है।
आगरा की पहली रैली में बहन जी ने लेट प्रचार शुरू करने का कारण बताया कि वे हर सीट पर प्रत्याशी खुद चुन रहीं थीं। ये तर्क मानते हैं ठीक है। 2017 के चुनाव में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पास टिकट वितरण की जिम्मेदारी थी, जब चुनाव हारे तो उन्हें निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने टिकट वितरण सही नहीं किया। अब इस बार चुनाव हारने पर किसे निकाला जाए ?
सही बात ये है कि बसपा के सामने बीजेपी है, जो 24 घण्टे पूरे साल राजनीति करती है और बसपा चुनाव के 4 महीने पहले राजनीति शुरू करती है। इस चुनाव के लिए मेहनत बसपा को 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू करनी थी और बहन जी ने चुनाव के 8 दिन पहले से शुरू की। ऐसे बसपा के लोग भाजपा से मुकाबला नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा 84 सुरक्षित सीटों पर सतीश मिश्रा जी ने जुलाई 2021 से ही प्रचार शुरू किया, उन्होने प्रबुद्ध जन सम्मेलन के नाम पर ब्राहमणों का सम्मेलन किया, इससे ब्राहमण तो जुड़ा नहीं लेकिन बसपा का आधार वोट बैंक पार्टी से जरूर दूर हो गया। मायावती जी को ये बात अच्छी तरह से पता थी कि उनके नाम पर ही दलितों का वोट बसपा को मिलता है मिश्रा जी के नाम पर नहीं। फिर भी सतीशचंद्र मिश्रा जी को क्षेत्र में प्रचार के लिए भेजा गया, इसके लिए कोई और नहीं बल्कि मायावती जी ही जिम्मेदार हैं।
वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि बहुजन समाज के लोगों को अब यह बात समझ में आने लगी है कि बसपा नेतृत्व अपने मूल मकसद से भटक चुका है, बसपा की इस पराजय के लिए मौजूदा नेतृत्व ही जिम्मेदार है, यही वजह है कि बहुजन समाज के लोगों ने मायावती जी के साथ ही उनके भाई आनंद और भतीजे आकाश आनंद का भी विरोध करना शुरू कर दिया है अब धीरे-धीरे लोग बसपा के मौजूदा नेतृत्व का खुलकर विरोध करना शुरू कर देंगे।
बहन जी ने पूरे 403 विधानसभा सीट वाले राज्य में कुल 19 सभाएं कीं। बसपा नेतृत्व ऐसे चुनाव जीतने का सपना देखेगा तो जीतना तो दूर चुनाव में सम्मान जनक हार भी संभव नहीं हो पायेगी। ये मोदी-अमित शाह का राजनीति का दौर है। वे नगर निगम के चुनाव में इससे दोगुनी सभाएं कर लेते हैं और बसपा का मौजूदा नेतृत्व इतने में भारत का सबसे बड़ा राज्य जीतने का सपना देख रहा है। ठीक है बसपा का अपना काम करने का तरीका है बहन जी की ये बात मानते हैं पर ये तरीका 2007 तक ठीक था जब कांशीराम जी से कैडर लिए युवा वोटर हुआ करते थे, आज वे लोग बूढ़े हो चुके हैं, उनके बच्चे आज युवा वोटर हैं अब वही नीति नहीं चलेगी।
बहन जी ने एक भी रोड शो नहीं किया, क्यों नहीं किया? केवल बहन जी को ही जान का खतरा है, अरे अभी आपके पास जो जीवन है इतनी बुरी हार के बाद वो मृत्यु से बुरा है, एक सीट केवल। रोड शो से फायदा ये होता है कि इससे हवा बनती है, जिस मतदाता ने निर्णय नहीं लिया कि किसे वोट देना है वो आपकी भीड़ देख कर मन बनाता है। बसपा की करारी हार के पीछे मायावती जी का चुनाव में दलितों के साथ ही पूरे बहुजन समाज से दूरी बनाकर रखना भी प्रमुख कारण है।
कमल जयंत, वरिष्ठ पत्रकार