कमल जयंत। देश में इन दिनों महंगाई और बेरोजगारी जैसे जनसरोकार से जुड़े मुद्दे को दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है, राज्य और केंद्र की सरकारें आमजन से जुडी जरूरी समस्याओं पर चर्चा करने से भी बच रही है। एक ओर पढ़ा लिखा युवा वर्ग बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। आमलोग महंगाई की मार से त्रस्त हैं और हमारे हुक्मरान देश और दुनिया में अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए दंगे-फसाद, जात-पात,धर्म, भाषा का सहारा ले रहे हैं। शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार नहीं दिया जा रहा है और मजदूरों के शोषण पर रोक नहीं लगाई जा रही हैं। बदनामी से बचने के लिए सभी सरकार अलग-अलग तरीके से देश के नौजवानों को भूख,बीमारी, रोजगार की याद से भटकाने में लगी हुई है। देश की 80 फ़ीसदी आबादी इससे त्रस्त है। भ्रष्टाचार, अपराध और सामाजिक बुराइयां बढ़ रही है और रोजगार घट रहा है। प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा गरीबों से दूर होती जा रही है। किसान मजदूरों का लगातार बड़े पैमाने पर शोषण करने और बर्बाद करने की नीयत से देश को आधुनिक युग में नहीं ले जाकर धर्म युद्ध में धकेला जा रहा है। इससे गरीब, दलित, पिछड़े, अति पिछड़ों के लिए तबाही और बर्बादी का मंजर साफ दिखाई पड़ रहा है और सियासी दलों के साथ ही दलित, पिछड़ा वर्ग के नेता भी अपने समाज के लोगों को गुमराह कर रहे हैं। देश में धार्मिक एजेंडे के आगे महंगाई और बेरोजगारी की आवाज पूरी तरह से दब गयी है।
केंद्र और यूपी में लाखों सरकारी पद खली पड़े हैं, लेकिन इन पदों को भरने के लिए सरकार के स्तर पर कोई भी कोशिश नहीं की जा रही है, दलितों और पिछड़ा वर्ग के खाली पदों को भी नहीं भरा जा रहा है, गेंहूँ, चावल और पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस सिलिंडर के दाम आसमान छू रहे हैं। इससे आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है, इसके साथ ही अब यूपी सरकार ने राशन कार्ड के जरिये मुफ्त राशन में गेंहू और चावल ले रहे गरीबों पर भी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है, अब सरकार की मुफ्त राशन योजना का लाभ उन्हीं को मिलेगा जिनकी सालाना आय तीन लाख रुपये से कम हो, यदि लाभार्थी के पास स्मार्ट फ़ोन, बाईक आदि है तो वह इस योजना का लाभ नहीं ले सकेगा। यूपी सरकार प्रदेश में अभी 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है, सभी जिलों में जिलाधिकारियों ने आदेश जारी करके कहा है कि जो लोग अहर्ता पूरी नहीं करते हैं वह अपना राशन कार्ड सरेंडर कर दें। आदेश में ये भी कहा गया जो अपात्र लोग अपना कार्ड नहीं जमा करेंगे और जाँच में उनकी पात्रता नहीं पाई गयी तो उनसे अबतक लिए गए राशन की बाजार दर से वसूली की जाएगी। इसमें सबसे खास बात यह है कि इस मामले में सरकार ने अभी तक कोई आदेश जारी नहीं किया है और जिलाधिकारियों की ओर से जारी किये गए राशनकार्ड सरेंडर करने के आदेश पर भी सरकार पूरी तरह से चुप है, सरकार की ये चुप्पी आश्चर्यजनक है। इसके साथ ही जिलाधिकारियों के इस आदेश के बाद जिन्हें राशन कार्ड के जरिये सस्ते दर पर राशन मिलता था राशन कार्ड जमा करने के बाद इन गरीबों को पैसा देकर भी सस्ता राशन नहीं मिलेगा, इन पर महंगाई की दोहरी मार पड़ेगी।
महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहे दलित और पिछड़ा वर्ग के बच्चों के लिए उच्च और तकनिकी शिक्षा पाना और मुश्किल हो गया है, राज्य में छात्र-छात्राओं को छात्रवृति नहीं मिल रही है, जिसकी वजह से गरीबी का दंश झेल रहे इन वर्ग के बच्चों को बीच में ही अपनी शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, एक अनुमान के मुताबिक यूपी में लगभग 11 लाख सरकारी पद खाली हैं, इन्हें भरने की प्रक्रिया भी सरकार शुरू करने के मूड में नहीं दिख रही है, जिन पद के लिए परीक्षाएं करायीं गयीं उनके पेपर लीक होने के कारण वह भर्तियाँ भी अभी आधार में लटकी हुई हैं। राज्य में सरकारी नौकरी और रोजगार के आभाव के कारण गरीबों के साथ ही माध्यम वर्गीय परिवार के लोग भी बढती महंगाई को लेकर काफी परेशान हैं, लेकिन सबसे खास बात ये है कि इन बुनियादी मुद्दों को लेकर सड़क पर कोई बड़ा जनांदोलन नहीं दिख रहा है, विपक्षी दल इन मुद्दों को लेकर अपनी आवाज बुलंद करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मीडिया और खासतौर पर न्यूज़ चैनल से इस तरह की खबरें पूरी तरह से नजरंदाज की जा रहीं हैं, चैनलों और अख़बारों में सरकार के एजेंडे ने ही प्रमुखता ले रखी है और इन चैनलों में इनदिनों एक बार फिर मंदिर-मस्जिद मुद्दे ने जगह ले राखी है। वैसे इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि इस समय देश में महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। चिकित्सा, स्वास्थ्य और शिक्षा का स्तर बहुत ही ज्यादा दयनीय है और हमारे नेता और मीडिया के लोग हिजाब, हलाल और हनुमान चालीसा के साथ ही लाउडस्पीकर में व्यस्त हैं, देश में यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है। कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि देश की जनता को बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए धार्मिक स्थलों को लेकर अदालतों में याचिकाएं दायर की जा रहीं हैं, वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की ईदगाह के साथ ही कुतुबमीनार और ताजमहल को लेकर मुकदमेबाजी के बाद बेरोजगार हिन्दू-मुस्लिम में बंटकर बुनियादी मुद्दों को भूलकर इन्हीं मुद्दों पर बहस कर रहे हैं। देश में एकबार फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है और मीडिया इन्हीं मुद्दों पर चर्चा कर रहा है, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
कमल जयंत (वरिष्ठ पत्रकार)।