नयी दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ0 मोहन भागवत ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भारत के भाग्य पथ का दीप स्तंभ निरुपति करते हुए आज कहा कि गांधी जी के सपनों का साकार होना प्रारंभ हो गया है और अगले 20 वर्षों में नयी पीढ़ी पूरे विश्वास एवं गर्व से कह सकेगी कि बापू के सपने का भारत बन गया है और अब वह पुन अपने आश्रम में शांति के साथ रह सकते हैं।
डॉ. भागवत यहां जाने.माने शिक्षाविद् डॉ. जगमोहन राजपूत द्वारा लिखित पुस्तक गांधी को समझने का यही समयष् का विमोचन करने के बाद समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह की अध्यक्षता जाने.माने संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप ने की। कार्यक्रम का आयोजन महात्मा गांधी के बलिदान स्थल गांधी स्मृति में किया गया था। यह पहला अवसर था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख नेे गांधी जी की बलिदान स्थली पर पदार्पण किया था।
उन्होंने कहा कि अभी तक गांधी जी केवल कुछ अवसरों पर याद करने एवं भाषण देने तक सीमित हैं। उनके रास्ते पर चलने की योग्यता संपूर्ण रूप से नदारद है। उन्होंने कहा कि 20 साल पहले गांधी जी की कल्पना का भारत बने यह असंभव लगता था लेकिन आज विश्वास से कह सकते हैं कि गांधी जी का सपना साकार होना प्रारंभ हो गया है। इसे नयी पीढ़ी साकार करेगी।
उन्होंने कहा कि गांधी जी के विचार देशकाल एवं परिस्थितियों के हिसाब से नहीं देखेंगे तो भ्रम होगा। हम आज के समय उसकी कार्बन कॉपी नहीं कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि उस समय की परिस्थिति क्या थीए समाज कैसा था और लक्ष्य क्या था। उन्होंने भारत के वास्तविक धरातल पर खड़े होकर विचार किया और सत्य एवं अहिंसा के हथियार लेकर आगे बढ़ने का संकल्प लिया। उन्होंने एक एक बात का सत्यनिष्ठा से निर्भयता से प्रयोग किया और लोकप्रियता की परवाह नहीं की। आज के नेतृत्व में वैसा ही निर्भय बनने की आवश्यकता है।
डॉ. भागवत ने कहा कि गांधी जी ने अपने हृदय के प्रकाश से भारत को समझा और जन सामान्य की पीड़ाओं को उनमें एक बन कर समझा। उन्होंने कहा कि वह कट्टर सनातनी हिन्दू हैं और इसीलिए पूजा पद्धति के भेद को नहीं मानते हैं। सभी धर्माें में सत्य है इसलिए सबका आदर करो और मिलजुल कर एक रहो। उन्होंने कहा कि स्वार्थ का विचार होगा तो एक दूसरे को प्रतिस्पर्धी मानोगे। एक दूसरे से डरेंगेए सशंकित होंगे। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से ऐसी स्थिति है तभी उसे बढ़ाने वाले भी हैं और इसीलिए झगड़े भी हैं। मुझे कुछ नहीं पाना ऐसी दृष्टि से रहेंगे तो झगड़े नहीं होंगे।
उन्होंने कहा कि गांधी जी का पहला पाठ प्रामाणिकता का है। वे आत्मतत्वों को लेकर हमेशा प्रामाणिक रहे। वह साध्य के साथ साथ साधन की शुचिता के भी प्रबल आग्रह पर अडिग रहे। शत्रु के विरुद्ध लड़ाई में भी उन्होंने साधन की शुचिता का आग्रह किया। उन्होंने लोकप्रियताए सफलता या असफलता को नहीं माना। कोई आंदाेलन किया और उसमें कानून व्यवस्था को लेकर अगर कोई चूक हुई तो उसका प्रायश्चित भी किया।
सरसंघचालक ने कहाए श् गांधी जी भारत के भाग्यपथ पर दीपस्तंभ बन कर आज भी खड़े हैं। उनका प्रकाश अविरल है। मन के अंधेरों को दूर करके देखें तो अबाध है। मुझे दिखता है कि परिस्थिति निराशा की नहीं है। रसायन शास्त्र में टाइट्रेशन की प्रक्रिया की भांति किसी को लग सकता है कि रंग थोड़ा बदला या पुनरू वैसा ही हो गया है लेकिन पर्याप्त प्रमाण होने दोए सारा रंग स्थायी रूप से बदल जाएगा। उन्होंने कहा कि बूंद.बूंद करके डालने का प्रयास सब तरफ हो रहा हैए युवा पीढ़ी ये काम कर रही है। हमें विश्वास है कि आज नहीं तो 20 साल बाद हम दो अक्टूबर को कह सकेंगे कि बापू आप चले गये थे। अब आप इस देश में शांति के साथ अपना आश्रम चलाते हुए रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आज से ही यह संकल्प शुरू हो तो 20 साल में यह संभव हो सकता है।