विदेशों में धूम मचा रही है इस घास से बनी चप्पलें और जैकेट ….
October 16, 2018
नई दिल्ली, इस घास से बनी चप्पलें और जैकेट विदेशों में धूम मचा रही है। उत्तराखंड में तैयार की जा रही कंडाली की स्लीपर दुनिया में छा रही है। फ्रांस से 10 हजार पेयर भीमल स्लीपर्स की डिमांड उत्तराखंड को मिली है। 4 हजार पेयर स्लीपर फ्रांस को एक्सपोर्ट भी कर दी गई हैं, जबकि बाकी तैयार की जा रही हैं। उत्तराखंड में रिंगाल, जूट, कंडाली (बिच्छू घास) और कॉपर से तैयार प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ने लगी है। इनकी ऑनलाइन सेल के लिए भी उद्योग विभाग तैयारी कर रहा है। उत्तराखंड की कॉटेज इंडस्ट्री के लिए ये उत्साहित करने वाली खबर है। राज्य में छोटे-छोटे समूहों द्वारा भीमल, रिंगाल, कंडाली जैसे पेड़ पौधों से तैयार किए जा रहे उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री के लिए उद्योग विभाग कई कंपनियों से वार्ता कर रहा है। हाल ही में अमेजॉन से विभाग ने 20 उत्पादों की बिक्री के लिए एमओयू साइन किया है।
जंगलों में उगने वाली बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल से उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ व बैग तैयार किए जा रहे हैं। चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा (फाइबर) निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं। अमेरिका, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, रूस आदि देशों को निर्यात के लिए नमूने भेजे गए हैं। इसके साथ ही जयपुर, अहमदाबाद, कोलकाता आदि राज्यों से इसकी भारी मांग आ रही है। चमोली जिले के मंगरौली गांव में रूरल इंडिया क्राफ्ट संस्था और उत्तरकाशी जिले के भीमतल्ला में जय नंदा उत्थान समिति हस्तशिल्प उत्पाद बनाने का काम करती हैं। इन संस्थाओं ने बिच्छू घास के रेशे से हाफ जैकेट, शॉल, बैग, स्टॉल बनाए हैं।
पहाड़ की बिच्छू घास जो बदन पर लग जाए तो खुजली के मारे जान निकल जाती है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि यह घास चाय की मीठी चुस्की भी दे सकती है। कंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना जाता है। जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाता है। इस चाय की कीमत प्रति सौ ग्राम 150 रुपये से लेकर 290 रुपये तक है। बिच्छू घास से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी ने प्रमाणित किया है।