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सुप्रीम कोर्ट को मिली, जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट से संपर्क करने में असमर्थ संबंधी रिपोर्ट

नयी दिल्ली , उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसे जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मिल गयी है, लेकिन यह घाटी के लोगों के उच्च न्यायालय से संपर्क करने में असमर्थ होने संबंधी दावों का समर्थन नहीं करती।

शीर्ष अदालत ने हालांकि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान रद्द किये जाने के बाद जम्मू कश्मीर में बच्चों को हिरासत में रखने के आरोपों की पड़ताल करने का निर्देश उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति को दिया है। समिति को एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपनी है।

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प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता अहमदी से कहा, ‘‘ हमें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मिली है जो आपके बयान का समर्थन नहीं करती।’’

कश्मीर में बच्चों को कथित तौर पर हिरासत में रखे जाने का आरोप लगाने वाले बाल अधिकार कार्यकर्ता इनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने 16 सितंबर को शीर्ष अदालत को बताया था कि घाटी के लोग वहां उच्च न्यायालय नहीं जा पा रहे हैं और उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

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पीठ ने कहा कि उसे इस संबंध में कुछ ‘परस्पर विरोधी’ रिपोर्ट भी मिली हैं लेकिन वह इस समय उन पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती।
पीठ ने अहमदी के इस दावे के बाद ही जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से इस बारे में रिपोर्ट मांगी थी।

पीठ ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान गांगुली और सिन्हा की याचिका पर सुनवाई करने के लिये सहमति देते हुये टिप्पणी की कि इसमें बच्चों को हिरासत में रखे जाने के बारे में कुछ ठोस मुद्दे उठाये गये हैं।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हमारे 16 सितंबर, 2019 के आदेश के बाद जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा हमें भेजी गयी रिपोर्ट का हमने अवलोकन किया है। इस समय, हम इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं समझते।’’

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पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि बच्चों को कथित रूप से हिरासत में रखने का मुद्दा उठाया गया है, हम जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति को याचिका में दिये गये तथ्यों के संबंध में पड़ताल करने और एक सप्ताह के भीतर हमें रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देते हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि रजिस्ट्री इस याचिका की एक प्रति तत्काल ही किशोर न्याय समिति को भेजेगी। इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले को एक सप्ताह बाद सूचीबद्ध कर दिया।

इससे पहले, जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि जब प्राधिकारियों को यह पता चला कि हिरासत में लिया गया एक व्यक्ति नाबालिग है तो उसका मामला तत्काल ही किशोर न्याय बोर्ड के पास भेज दिया गया।

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मेहता ने कहा, ‘‘इसमें (याचिका) कुछ ठोस मुद्दे उठाये गये हें जो किसी भी व्यक्ति की सीमा से बाहर हैं।

शीर्ष अदालत ने 16 सितंबर को अहमदी के इस दावे को बहुत ही गंभीर बताया था कि लोगों को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय से संपर्क करने में दिक्कतें हो रही हैं। साथ ही न्यायालय ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में तत्काल अपनी रिपोर्ट भेजने का अनुरोध किया था।

प्रधान न्यायधीश ने कहा था कि यदि आवश्यक हुआ, तो वह स्वंय श्रीनगर जायेंगे और वह उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी इस संबंध में बातचीत करेंगे।

शीर्ष अदालत कश्मीर में बच्चों को कथित रूप से हिरासत में रखे जाने के मुद्दे पर हस्तक्षेप के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

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सालिसीटर जनरल ने पीठ से यह भी कहा था कि राज्य में सभी अदालतें ही नहीं बल्कि लोक अदालतें भी काम कर रही हैं।
याचिका में कहा गया है कि 18 साल से कम उम्र के हिरासत में लिये गये सभी व्यक्तियों की आयु गणना के माध्यम से पहचान की जाये।

याचिका में गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिये गये सभी बच्चों को किशोर न्याय समिति के समक्ष पेश करने और उन्हें मुआवजा दिलाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है।

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