नई दिल्ली, आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला दे दिया है। यह फैसला जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने सुनाया।
सरकारी नौकरी में एससी-एसटी को प्रमोशन मामले में यह फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिए जरनैल सिंह से संबंधित विवाद के मामले में जो सवाल उठे थे उस पर अपना जवाब देते हुए कहा कि प्रमोशन में रिजर्वेशन के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा तैयार करने की जिम्मेदारी राज्य की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इसके लिए कोई मापदंड तय नहीं कर सकती है और अपने पूर्व के फैसलों के मानकों में बदलाव नहीं कर सकती है। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वे एम नागराज केस में संविधान बेंच के फैसले में बदलाव नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच में तमाम पक्षकारों की ओर से दलील पेश की गई थी। इस दौरान राज्य सरकारों की ओर से पक्ष रखा गया था जबकि केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने दलील पेश की। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील के बाद फैसला 26 अक्टूबर 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह उस फैसले को दोबारा नहीं ओपन करेगा जिसमें कहा गया है कि एससी और एसटी को रिजर्वेशन में प्रोमोशन दिया जाएगा, ये राज्य को तय करना है कि इसे कैसे लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने कई राज्यों की ओर से यह कहा गया था कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने में कुछ बाधाएं हैं जिन्हें देखने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा था कि वह इस बात को साफ करना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच का नागराज और जरनैल सिंह से संबंधित वाद में दिए गए फैसले में वह दोबारा नहीं जाना चाहते। उन फैसलों को दोबारा ओपन करने की जरूरत नहीं है
2006 में आए नागराज से संबंधित वाद में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा एकत्र किया जाएगा। ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होगा। सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश दिया था कि ‘राज्य एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है। हालांकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।’
साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इसी ऐतिहासिक फैसले के बाद से कानून बना था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। समय-समय में राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है। इसके लिए राज्य सरकारें तमाम उपाय भी निकाल लेती हैं। देश के कई राज्यों में अभी भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है।