ओबीसी जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा एक्शन, एडवोकेट के के पाल की मेहनत रंग लाई

नई दिल्ली,पिछड़ी जातियों की जातिगत जनगणना कराए जाने के संबंध में आखिरकार एडवोकेट कृष्ण कन्हैया पाल की मेहनत रंग ले आई है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में दायर रिट याचिका संख्या 1075/2021 कृष्ण कन्हैया लाल एडवोकेट बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया एवं अन्य में आज दिनांक 16 1222 को माननीय मुख्य न्यायाधीश डी.वा.डी चंद्रचूड़ एवं माननीय न्यायाधीश पमीडीघन्टम श्री नरसिम्हा की बेंच ने पिछड़ी जातियों की जातिगत जनगणना कराए जाने के संबंध में भारत सरकार के गृह मंत्रालय सामाजिक न्याय मंत्रालय और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को नोटिस जारी करके जवाब दावा दाखिल करने के लिए आदेशित किया है।

उच्चतम न्यायालय में लखनऊ निवासी पिछड़ी वर्ग की गडरिया जाति के एवं उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ में वकालत कर रहे अधिवक्ता कृष्ण कन्हैया पाल एडवोकेट के द्वारा पिछड़ी जातियों की जातिगत जनगणना कराए जाने हेतु रिट याचिका 13.9.2021 को दायर की गई थी। जिसमें आज दिनांक 16.12. 2022 को माननीय मुख्य न्यायाधीश डीवाई डी चंद्रचूड़ एवं माननीय न्यायाधीश पीड़ानाशक, श्री नरसिम्हा की बेंच ने पिछड़ी जातियों की जातिगत जनगणना कराए जाने के संबंध में भारत सरकार के गृह मंत्रालय सामाजिक न्याय मंत्रालय राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को नोटिस जारी करके जवाब दावा दाखिल करने के लिए आदेशित किया है।

उपरोक्त रिट याचिका में याचिकाकर्ता के द्वारा यह आधार लिया गया है कि सन 1931 के बाद से आज तक भारत में पिछड़ी जातियों की जातिगत जनगणना नहीं कराई गई है जिसकी वजह से पिछड़ी जातियों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण है सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है । याचिका में यह भी कहा गया है कि सन 2017 में जस्टिस रोहणी कमीशन का गठन किया गया था इस कमीशन के द्वारा यह पता लगाना था कि पिछड़ी जातियों में किन जातियों को आरक्षण का लाभ सबसे अधिक मिला है।
याचिका में अभी आधार लिया गया है कि पिछड़ी जातियों का हक बिना जातिगत जनगणना के मिलना संभव है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 के अनुसार पिछड़ी जातियों को लोकल बॉडीज के चुनाव में आरक्षण प्रावधान है । बिना जातिगत जनगणना के या आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में सही प्रकार से निश्चित नहीं किया जा सकता है उपरोक्त रिट की अगली सुनवाई 2023 में निश्चित की गई है।

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