नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस ‘कोविड 19’ महामारी के बीच उपचार व राहत कार्यों में दलित, मुस्लिम, उत्तर पूर्व भारत के लोगों से भेदभाव की शिकायत संबंधी याचिका पर चौंकाने वाली प्रतिक्रिया दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने न केवल याचिका खारिज करते हुए कहा कि तीन वकील मिलकर कुछ भी याचिका दायर कर देंगे तो शीर्ष अदालत उसे स्वीकार नहीं कर लेगी, बल्कि याचिकाकर्ता आंचल सिंह को कड़ी फटकार लगायी।मूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने ये प्रतिक्रिया दी।
वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये जैसे ही सुनवाई शुरू हुई सुश्री सिंह ने दलील दी कि केंद्र सरकार द्वारा कोरोना महामारी के कारण जारी राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की मार से त्रस्त लोगों के लिए किये जा रहे राहत कार्यों में दलित, मुस्लिम एवं उत्तरपूर्व के लोगों के साथ भेदभाव किया जा रहा है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम में इन लोगों को अलग से छूट दी गई है। उन्होंने कहा कि कोरोना से संक्रमित कमजोर समुदाय के लोगों को उपचार के दौरान दी जाने वाली सुविधाओं में भी जाति एवं धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है, जबकि कमजोर वर्ग का होने के कारण उन्हें अन्य से बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए।
न्यायमूर्ति गवई ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए उनसे पूछा, “आप यह बात किस आधार पर कह रही हैं? क्या इस तरह के भेदभाव को लेकर कोई एडवाइजरी जारी की गई है? क्या कोई निर्देश जारी किए गए हैं?
सुश्री सिंह ने कहा कि उनकी याचिका दलितों, मुस्लिमों और उत्तर पूर्व के लोगों का सामाजिक बहिष्कार के बारे में है। इस पर शोध करने वाले वे कुछ वकीलों का समूह हैं। जिन्होंने अपनी रिसर्च में ये भेदभाव पाया है। इस बार नाराज होने की बारी न्यायमूर्ति कौल की थी, जिन्होंने कहा, “तीन वकील मिलकर अदालत में कुछ भी फ़ाइल कर देंगे? और आप चाहते हैं हम इसे स्वीकार लें। माफ कीजिये, हम इसे नहीं सुनेंगे। आपकी याचिका हम खारिज कर रहे हैं।”