नई दिल्ली, जातीय भेदभाव हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं है। हजारों सालों की वर्णवादी परंपरा के कारण, एेसी घटनाओं का ना तो व्यापक तौर पर विरोध होता था और ना ही यह कोई खबर बनती थी। अस्सी-नब्बे के दशक तक दलित जनसंहार की खबरें अक्सर सुनायी पड़ती थीं …
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