लखनऊ , कुछ दलों के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद कई दलों सत्ता पक्ष और विपक्ष का राजनीतिक गणित बिगड़ सकता है ।
उत्तर प्रदेश में पिछले दो दिन में घटे राजनीतिक घटनाक्रम में आम आदमी पार्टी (आप) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान कर दिया है । इसी क्रम में उन्होंने बुधवार को सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से बात की और साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की । श्री ओवैसी की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव से भी बात हो रही है । हो सकता कि शिवपाल सिंह यादव भी ओवैसी वाले गठबंधन में शामिल हो ।
दिल्ली की तरह मुफ्त बिजली ,पानी और मोहल्ला क्लिनिक की बात कर आप संयोजक अरविंद केजरीवाल मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेंगे तो एआईएमआईएम के ओवैसी की नजर उन जिलों पर है जहां मुसलमान मतदाताओं की अच्छी संख्या है । वो बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी छोटी पार्टी से गठबंधन कर अपनी पैठ बनाना चाहते हैं ।
ओवैसी ने चुनाव लड़ने की बात कर समाजवादी पार्टी ,कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है । चुनाव में इन दलों को मुसलमानों के 90 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिलते रहे हैं । बिहार विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी ने राष्ट्रीय जनता दल तथा कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाकर पांच सीटें जीत ली थी । ओवैसी की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद,बागपत,आगरा,गाजियाबाद,अमरोहा और अलीगढ़ जिले की सीटों पर है जहां मुसलमान बड़ी संख्या में हैं ।
सपा को उत्तर प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुसलमानो के 60 प्रतिशत तक वोट मिलते रहे हैं । ओवैंसी जातीयसमीकरण के साथ सपा के मजबूत वोट बैंक में सेंध लगायेंगे । भाजपा की बी टीम कहे जाने वाले ओवैसी के आने से सपा को अपना किला बचा कर रखना होगा तो मुस्लिम वोट के बंटने से भाजपा फासदे में रह सकती है ।
आप के आने से भाजपा की भी मुश्किल बढ़ सकती है । अरविंद केजरीवाल दिल्ली की तरह लोक लुभावन घोषणा कर गरीब और मध्यम वर्गीय मतदाताओं को प्रभावित कर सकते है । इसलिये अरविंद केजरीवाल की उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ ही भाजपा आक्रामक हो गई । भाजपा उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक ने कहा कि लोग भूले नहीं हैं कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश के लोगों को धोखे से कोरोना काल में सड़क पर ला कर छोड़ दिया था । उन सभी लोगों को उत्तर प्रदेश सरकार ने रोजगार मुहैया कराया ।
ओम प्रकाश राजभर ने पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और चार सीटें जीती थी । इससे पहले वो 2012 में मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ मिलकर लड़े थे और खाली हाथ रहे थे । मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजभर को अपने कैबिनेट में भी शामिल किया था । लेकिन बाद में वो अगल हो गये और मंत्री पद से त्यागपत्र भी दे दिया ।
अभी तो राजनीतिक घटनाक्रम और तेजी से बदलेंगे और अपना अपना वोट बैंक बचाये रखने के लिये क्या उपाय करती हैं यह देखना दिलचस्प होगा ।