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सरकार ने मीडिया पर रोक लगाने का किया अनुरोध, तो सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये जवाब

नयी दिल्ली , केंद्र सरकार ने मीडिया पर रोक लगाने का  सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है। केंद्र ने सरकारी तंत्र से तथ्यों की पुष्टि किये बिना ‘कोविड-19’ से संबंधित कोई भी रिपोर्ट प्रकाशित या प्रसारित करने से रोक के निर्देश का अनुरोध किया।

केंद्र सरकार ने 39 पन्नों की स्थिति रिपोर्ट के 56वें पैरा में मीडिया में कोरोना से संबंधित अपुष्ट खबरों के प्रकाशन एवं प्रसारण पर रोक लगाने के लिए न्यायालय से अनुरोध किया है।

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केंद्र ने कहा है कि शीर्ष अदालत को यह निर्देश जारी करना चाहिए कि कोई भी मीडिया संगठन कोरोना से जुड़ी खबरों की संबंधित अधिकारों से पुष्टि किये बिना न तो प्रिंट मीडिया में प्रकाशित करे, न ही चैनलों पर या वेबसाइटों पर प्रसारित करे। स्थित रिपोर्ट में कहा गया है कि अपुष्ट खबरों के प्रकाशन एवं प्रसारण से बेवजह लोगों में अफरातफरी मचेगी।

अपने कार्यालय से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये केंद्र का पक्ष रख रहे श्री मेहता ने सुनवाई के दौरान भी फर्जी खबरों पर नकेल कसने का न्यायालय से अनुरोध किया था, जिसके बाद खंडपीठ ने कहा था कि सोशल मीडिया- ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि में फर्जी खबरें प्रकाशित करने वालों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए और कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।

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उच्चतम न्यायालय ने देश में कोरोना वायरस से संबंधित फर्जी खबरें देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का सरकार को  निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की विशेष पीठ ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों के समक्ष उत्पन्न परिस्थितयों के निवारण के लिए दिशानिर्देश जारी करने संबंधी याचिका की सुनवाई आगामी सात अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी, लेकिन इस बीच कई दिशानिर्देश भी जारी किये।

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खंडपीठ ने अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव एवं रश्मि बंसल की याचिकाओं की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संयुक्त सुनवाई के दौरान न केवल केंद्र सरकार द्वारा ऑनलाइन प्रेषित स्थिति रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन किया, बल्कि सॉलिसिटर जनरल की ओर से रखे गये पक्षों को भी गम्भीरता से सुना। वकीलों ने भी अपने अपने घर से ही वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये दलीलें दी। सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता के यहाँ गृह सचिव और संयुक्त सचिव भी मौजूद थे।

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