नई दिल्ली, देश की राजधानी नई दिल्ली स्थित डॉ. कल्याण बनर्जी क्लिनिक में विकसित होम्योपैथिक उपचार पद्धति ने कीमोथेरेपी, विकिरण थिरेपी और कैंसर सर्जरी के दुष्प्रभावों का इलाज करने में अपनी कारगरता साबित की है। पांच साल के फौलोअप से इस बात की भी पुश्टि हुई है कि कुछ तरह के कैसर के दोबारा होने की दर भी बहुत कम रहती है।
यह उपचार पद्धति या तो उल्टी, दर्द, मतली, बालों के झड़ने और आर्गन फेल्योर जैसे कैंसर उपचार के सर्वाधिक समान्य दुश्प्रभावों को या तो पूरी तरह से खत्म कर देती है या काफी हद तक कम कर देती है और इसके कारण मरीज बिना किसी बिलंब के अपना उपचार जारी रख पाता है और उपचार को पूरा कर पाता है। परम्परागत उपचार के कारण होने वाले दुश्प्रभावों के लिए होम्योपैथी उपचार को ओंकोलाॅजिक उपचारों के साथ जारी रखा जा सकता है और यह देखा गया कि इस क्लिनिक में आने वाले 80 प्रतिषत मरीजों ने होम्योपैथी उपचार पर पूरी तरह से निर्भर रहते हुए अपने दुश्प्रभावों का समाधान किया जबकि इस दौरान उन्होंने अतिरिक्त एलोपैथी दवाइयां नहीं ली।
क्लिनिक की यह उपचार पद्धति कैंसर मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती है और जीवित बचे लोगों की आयु में कुछ साल का इजाफा करती है। जिन मरीजों ने इस क्लिनिक में लंबे समय तक इलाज कराया उन मरीजों में कुछ तरह के कैंसर के दोबारा होने की दर बहुत ही कम पायी गयी। पद्म श्री सम्मान से सम्मानित डाॅ. कल्याण बनर्जी, एमडी (होम्योपैथी) ने कैंसर उपचार के दुष्प्रभावों और अनूठी होम्योपैथी उपचार पद्धति के बारे में कहा, ‘‘हमारे क्लिनिक में उपचार कराने वाले 70 प्रतिषत से अधिक मरीज वैसे मरीज होते हैं जिन्होंने परम्परागत उपचार लिया होता है और जिनकी बीमारी पर परम्परागत उपचार ने प्रभाव डालना बंद कर दिया होता है। हेपटो – सेलुलर कार्सिनामा की उन्नत अवस्था के 30 प्रतिषत से अधिक मरीजों ने परम्परागत उपचार के तहत जीवित रहने की 24 महीने की अधिकतम अवधि को भी पार कर लिया है। जबकि ओरल कैविटी के स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा की आरंभिक अवस्था वाले 90 प्रतिषत से अधिक मरीजों ने परम्परागत उपचार की तुलना में पांच साल की जीवित रहने की अवधि को भी पार कर लिया है। परम्परागत रोग प्रबंधन की तुलना में ग्लियोब्लास्टोमा मल्टीफॉर्म के पांच साल के जीवित रहने के प्रतिशत को हमारे मरीज पार कर रहे हैं। फेफड़ों, अग्न्याशय और अंडाशय के उन्नत चरण के वैसे कैंसर मरीज जिनकी बीमारी पर किसी भी तरह की कीमोथेरेपी और विकिरण थिरेपी का प्रभाव नहीं पड़ रहा था उन रोगियों ने ऑन्कोलॉजिस्टों द्वारा दिए गए अनुमान को क्लिनिक में होम्योपैथिक उपचार से पार कर लिया।’’
आधुनिक चिकित्सा में, कैंसर के उपचार के तीन मुख्य रूप हैं –
कीमोथेरेपी (जिसमें हार्मोनल थेरेपी शामिल हैं), विकिरण चिकित्सा और कैंसर सर्जरी। कैंसर के प्रकार और अवस्था के आधार पर और मरीजों की उम्र के अनुसार, रोगी इनमें से किसी एक या अधिक विधियों के संयोजन के विकल्प को चुन सकते हैं। पारंपरिक दवाओं से उपचार कराने पर कई खतरनाक दुष्प्रभाव सामने आते हैं जैसे मतली, उल्टी, सर्जरी वाली जगह का ठीक नहीं होना, उपचार के बाद उस जगह पर या किसी अन्य जगह पर कोई दूसरा संक्रमण हो जाना, वजन कम होना या बढ़ना, रक्त कोषिकाओं को क्षति, दस्त, दांतों में क्षय, बालों का झड़ना और कमजोरी आदि। ये प्रतिक्रियाएं कभी-कभी बहुत गंभीर हो सकती हैं और कुछ मामलों में आर्गन फेल्योर की नौबत आ सकती है।
क्लिनिक में दूसरी पीढ़ी के होम्योपैथ डॉ. कुशल बनर्जी कहते हैं, “साइड इफेक्ट्स के डर से, मरीज कीमोथेरेपी आदि लेने में देरी करते हैं या उनसे बचते हैं। इसके अलावा, मरीज अक्सर रक्त काउंट पर उपचार के नकारात्मक प्रभाव के परिणामस्वरूप अपना उपचार जारी रखने में असमर्थ होते हैं। सौभाग्य से, होम्योपैथी का उपयोग दर्द और शरीर को होने वाले नुकसान के डर के बिना इन दुष्प्रभावों का प्रबंधन करने के लिए किया जा सकता है। कीमो, विकिरण, और सर्जिकल हस्तक्षेपों के दुष्प्रभावों को प्रबंधित करने में हमारी उपचार पद्धति के परिणाम पारंपरिक, एलोपैथिक पद्धतियों की तुलना में कुछ अधिक ही हैं।’’
डॉ. कुशल बनर्जी कहते हैं, “लोगों को कीमोथेरेपी या विकिरण से बचने या देरी करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसा करने से पूरा उपचार अप्रभावी बन सकता है। हमारे क्लिनिक में, हम हर दिन कैंसर के इलाज के लिए और एलोपैथिक कैंसर के उपचार के साइड इफेक्ट्स के लिए आने वाले सौ से अधिक मामले देखते हैं। दशकों के अनुभव और सैकड़ों हजारों कैंसर रोगियों के प्रबंधन के बाद, हम उपचार को फिर से विकसित और मानकीकृत कर सकते हैं जो काफी प्रभावी है। जब मरीज कीमोथेरेपी जैसे पारंपरिक उपचार को जारी रखना चाहते हैं, तो हम उन्हें दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं।”