लेखन जितना समय और समाज के करीब होगा, उतना ही होगा स्वीकार्य-कहानीकार कुलदीप

झांसी, उत्तर प्रदेश की वीरांगना नगरी झांसी में तीन दिनों तक चले बुंदेलखंड साहित्य महोत्सव-2020 में हिस्सा लेने आये जाने माने कहानीकार कुलदीप राघव ने लोगों के बीच विशेषकर युवाओ के बीच साहित्य की पहुंच बढाने के लिए लेखन के शुद्ध,सौम्य ,समय और समाज के करीब होने की जरूरत को रेखांकित किया।

साहित्य की “ नवलेखन” परंपरा से जुड़े कुलदीप ने सोमवार को यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा कि वह नवलेखन परंपरा से संबंधित हैं ।वह अपनी रचनाओं में इस तरह की हिंदी का इस्तेमाल करते हैं जो साहित्यिक दृष्टि से तो प्रबल है लेकिन समझने में बेहद आसान है, यही नवलेखन परंपरा है। लेखक जितना शुद्ध , सौम्य और समाज तथा समय के निकट लिखेंगे उतना ही लोग उनसे और उनकी किताबों से जुडेंगे ।

लोगों और विशेषकर युवाओं के साहित्य विशेषकर हिंदी साहित्य से दूर होने के कारण के संबंध में पूछे गये सवाल के जवाब में कुलदीप ने कहा कि साहित्य में क्लिष्ट हिंदी का इस्तेमाल इसकी बड़ी वजह रहा। जो साहित्यकार यह मानते हैं क्लिष्टता महानता का आधार है मैने उस लाइन को तोड़ने का प्रयास किया है कि सरलता महानता का अधिकार है। सरल शब्दों मे भी वहीं बात और उतनी ही गहराई से कहना संभव है जिसके लिए आप बड़े भारी और कठिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के लेखन से नुकसान हिंदी का ही हो रहा है आप चाहे जितनी विद्वता दिखा लें लेकिन आपकी बात लोगों तक नहीं पहुंच रही है, इसी कारण पाठक और विशेषकर युवा हिंदी साहित्य से दूर होता जा रहा है।

उन्होंने कहा “ हमारी किताबों की सफलता की जो कहानी है उसका आधार सरलता ही है। सरल, सुलभ भाषा में जिस तरह से मैं और मेरे जैसे दूसरे लेखकों ने लिखा, उसी की बदौलत हमें न केवल नया पाठक वर्ग मिला बल्कि उनका भरपूर प्यार मिल पा रहा है और इसी कारण मेरी किताब जारी होने के बाद दूसरे ही दिन अमेजन की बेस्ट सेलर लिस्ट में पहले नंबर पर पहुंच गयी। साहित्यकार भी हमारी स्वीकार्यता को मानते हैं और हमारी किताबें न केवल युवाओं को बल्कि बड़े उम्र के साहित्यकारों को भी आ र्कर्षित और प्रभावित कर रही हैं। लेखनी में दम हो, कहानी कहने की कला हो तो भाषा सरल इस्तेमाल करें या कठिन अलग विषय होे सकता है लेकिन आपको पाठक मिलेंगे।

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