लखनऊ, ज्यादातर संत जहां सरकार के साथ खड़े नजर आ रहें हैं वहीं एक दलित संत केंद्र सरकार से नाराज हैं।
जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर नियुक्त किए जाने वाले पहले दलित संत महंत कन्हैया प्रभुनंद गिरी, केंद्र सरकार से नाराज हैं।
नवगठित राम मंदिर ट्रस्ट में दलितों-Set featured image पिछड़ों को ऊचित प्रतिनिधित्व न दिये जाने से दलित संत क्षुब्ध हैँ।
32 साल के संत,दलित संत महंत कन्हैया प्रभुनंद गिरी ने कहा कि उनकी ऊंची पदवी अब ‘मात्र औपचारिकता’ भर बनकर रह गई है, क्योंकि सरकार ने इस तथ्य को आसानी से नजरअंदाज कर दिया है कि एक दलित सदस्य को भी ट्रस्ट में शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा,’आप एक दलित को ऊंची पदवी देते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर उस पर विश्वास नहीं करते हैं या जिम्मेदारी नहीं देते हैं।’
प्रभुनंद गिरी ने कहा, ‘अयोध्या यूपी में है, राम मंदिर यूपी में होगा और मैं यूपी के आजमगढ़ से हूं। मुझसे सलाह लेना चाहिए था और ट्रस्ट का हिस्सा बनाया जाना चाहिए था। औपचारिकता न कीजिए, विश्वास जीतिए।’
उन्होंने कहा,’प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दोनों ने कुंभ का दौरा किया और अनुष्ठान किया, लेकिन दोनों में से किसी ने भी मुझसे मुलाकात नहीं की या मेरे बारे में पूछताछ नहीं की, भले ही मैंने ‘शाही स्नान’ करके इतिहास रचा था।’
गिरी ने कहा कि वह अयोध्या के संतों के साथ खड़े हैं, वे भी राम मंदिर आंदोलन में योगदान के बावजूद राम मंदिर ट्रस्ट में अनदेखी किए जाने के कारण नाराज हैं।
दलित महामंडलेश्वर ने कुंभ के दौरान दावा किया था कि उनका मिशन एससी, एसटी और ओबीसी की वापसी सुनिश्चित करना था, जिन्होंने एक जाति व्यवस्था में उनके शोषण के बाद हिंदू ‘सनातन धर्म’ को छोड़ दिया था।
इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उदित राज ने राम मंदिर ट्रस्ट में सदस्यों के प्रारूप को लेकर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा है कि पिछली जनगणना के अनुसार दलितों की आबादी ब्राह्मणों से तीन गुना अधिक है। फिर सरकार ने राम मंदिर को ब्राह्मणों पर ही क्यों छोड़ दिया है?’