नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करेगा कि क्या किसी व्यक्ति को जमानत की शर्तोँ के तहत सोशल मीडिया के इस्तेमाल से रोका जा सकता है?
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने सचिन चौधरी की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए कहा कि वह इस महत्वपूर्ण बिंदु पर विचार करेगी कि क्या जमानत की शर्तों में सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध को शामिल किया जा सकता है, खासकर तब जब उस व्यक्ति के खिलाफ सोशल मीडिया के दुरुपयोग का कोई आरोप नहीं है।
न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किये। याचिकाकर्ता ने जमानत पर इस तरह की शर्तें लगाये जाने को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता को राजद्रोह के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जमानत पर रिहाई का आदेश दिया है। लेकिन जमानत की शर्तों में एक शर्त यह भी है कि वह जमानत पर बाहर रहने के दौरान मामले का ट्रायल पूरा होने तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, “हमें इसमें (शर्त में) कोई बुराई नजर नहीं आती। यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया के जरिये परेशानी पैदा करता है, तो कोर्ट इस तरह के ‘इंस्ट्रूमेंट’ के इस्तेमाल पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा सकता?’’
सचिन चौधरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ सोशल मीडिया के दुरुपयोग से संबंधित कोई आरोप नहीं है, उसके बावजूद इस तरह की शर्त उनके ऊपर थोपी गयी है।” इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस बिंदु की न्यायिक व्याख्या करके निर्णय देगी। इस बीच केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया जाता है।
सचिन चौधरी ने कोरोना महामारी से निपटने के तरीके पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर सवाल खड़े किये थे, जिसके बाद राज्य सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है।