मानव जीवन की जटिल गुत्थी को, कृष्ण के वचनामृत सुलझाने का करते हैं काम
September 18, 2021
लखनऊ, मानव जीवन क्या है और उसे किस प्रकार जिया जाए, इस जटिल गुत्थी को श्री कृष्ण के वचनामृत सुलझाने का काम करते हैं। युद्ध भूमि पर दिया गया गीता का उपदेश संसार का श्रेष्ठतम ज्ञान माना जाता है।
श्रीकृष्ण के गीता में दिए उपदेश आज भी प्रासंगिक है। इनको अपनाकर व्यक्ति का जीवन पूरी तरह से बदल सकता है और कामयाबी के शिखर पर पहुंच सकता है।
भगवान कृष्ण से जुड़ी भगवद गीता में केवल धर्म से जुड़े उपदेश नहीं हैं बल्कि इसमें जीवन का सार छिपा है । कृष्ण के उपदेश में अद्भुत संदेश है जो आपको जीवन की राह दिखाते है, कामयाबी की सीढि़यों की तरफ ले जाते है और इनमें जीवन के हर सवालों का जवाब और समाधान है।
श्रीकृष्ण ने सबसे अधिक महत्व कर्म को दिया है। उन्होने कहा है कि मनुष्य जो कर्म करता है वही उसका भविष्य तय करतें हैं।इसलिये सुख-दुख, लाभ-हानि और जीत-हार की चिंता ना करके, मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार कर्तव्य करना चाहिए। ऐसे भाव से कर्म करने पर मनुष्य जरूर सफल होता है।जो व्यक्ति अपने कर्म से विमुख हो जाता है, उसका भगवान भी आदर नहीं करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे उसके अनुरूप ही फल की प्राप्ति होती है। इसलिए सदकर्मों को महत्व देना चाहिए।और कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है ।
श्रीकृष्ण ने मन पर नियंत्रण को जरूरी बताया है। वह कहतें हैं-जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं रखता है, वह स्वयं का धीरे धीरे शत्रु बन जाता है।इंद्रियों के अधीन होने से मनुष्य के जीवन में विकार आता है। उन्होने कहा है कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
व्यर्थ की चिंता को श्री कृष्ण ने जीवन मे सफलता के लिये घातक बताया है। उन्होने कहा है कि यह मानना चाहिये कि जो हुआ अच्छे के लिए हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छे के लिए हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा। परिवर्तन ही संसार का नियम है।जिंदगी में सदैव अवसरों का आनंद लेना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में कहा था “ आत्मा अजर अमर है। आत्मा ना ही जन्म लेती है और ना ही मरती है। आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकता, अग्नि नहीं जला सकती है। जल नहीं बुझा सकता, वायु नहीं सुखा सकती। जब -जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होगा, तब-तब मैं किसी भी रूप में आऊंगा और धर्म की स्थापना करूँगा। “