ई-कचरा पैदा करने वाले शहरों में ये सबसे आगे, जानिये सुरक्षित निपटान क्यों जरूरी ?
March 22, 2020
नयी दिल्ली, कोरोना वायरस से बचाव को लेकर पूरे देश में चलाये जा रहे सफाई अभियान की तरह ही बेकार और खराब हो चुके इलेक्ट्राॅनिक सामान का सुरक्षित निपटान बहुत जरूरी है क्योंकि इनमें मौजूद रसायन फेफड़े, किडनी, लीवर, हृदय, मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसे कचरे में पारा, सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक और बेरिलियम जैसे विषाक्त पदार्थ होते हैं जो कई गंभीर बीमारियां पैदा करते हैं। बेकार हो चुके कंप्यूटर के माॅनीटर, मदरबोर्ड, लैपटॉप, टीवी, रेडियो और रेफ्रिजरेटर, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी), मोबाइल फोन और चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन के साथ एलसीडी या प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर जैसे इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों को ई-कचरा या इलेक्ट्राॅनिक कचरा कहा जाता है और इनका सही तरीके से निबटान नहीं होने पर आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता हैं।
देश में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में एसोचैम-केपीएमजी की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर वर्ष जितना ई-कचरा पैदा होता है उसका लगभग चार प्रतिशत भारत में पैदा होता है। ई-कचरा में कम्प्यूटर उपकरणों का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा होता है। कम्प्यूटर उपकरणों के बाद घरों से पैदा होने वाले ई-कचरे में फोन (12 प्रतिशत), बिजली के उपकरण (आठ प्रतिशत) और चिकित्सा उपकरण (सात प्रतिशत) भी शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार ई-कचरा पैदा करने वाले शहरों में मुंबई सबसे आगे है जहां हर साल एक लाख 20 हजार टन ई-कचरा पैदा होता है। उसके बाद दिल्ली में 98,000 टन ई-कचरा पैदा हेाता है जबकि बेंगलुरु में 92,000 टन ई- कचरे का उत्पादन होता है। रिपोर्ट बताती है कि 2018 के बाद से, देश में सालाना 20 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है और अन्य देशों से बड़ी मात्रा में इसका आयात भी किया जा रहा है।
ई-कचरे और रासायनिक विषाक्त पदार्थों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में जुटे संस्थान ‘टॉक्सिक्स लिंक’ के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा के अनुसार आज ई-कचरा एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रहा है और इसका समाधान तत्काल आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आज 95 प्रतिशत कचरा असंगठित क्षेत्र से पैदा होता है और जमा होता है। घरों से ई-कचरा असंगठित तरीके से जमा किया जाता है और उसे संबंधित क्षेत्र को बेचा जाता है जहां ई-कचरे को सही तरीके से रिसाइकिल किए बगैर फेंक दिया जाता है।
उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ‘कंज्यूमर वॉयस’ के प्रमुख आशिम सान्याल कहते हैं कि देश में ई-कचरा को लेकर सबसे बड़ी समस्या उसके संकलन, संग्रहण एवं निष्पादन की है। इस बारे में कानून बने हुए हैं लेकिन व्यवहार में ऐसा कुछ देखने में नहीं आता । उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि देश के कुल ई-कचरे का केवल पांच प्रतिषत ही रिसाइकिल हो पाता है और इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। देश में कचरे के जिम्मेदार निबटान की बहुत अधिक जरूरत है। साथ ही इसे लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की भी बहुत आवश्यकता है।
ई-कचरे के बारे में जागरूकता पैदा करने वाली एक अन्य संस्था ‘‘करो संभव’’ के संस्थापक प्रांशु सिंघल कहते हैं कि भारत ई-कचरे का उत्पादन करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश हो गया है। हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि ई-कचरे के निष्पादन की कोई समुचित व्यवस्था नहीं बनी है। उन्होंने कहा कि इसके निपटान में लोगों की भी भूमिका है। लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। हमने कोई उत्पाद खरीदा और उसका उपयोग किया और ऐसे में लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि उसे सही से डिस्पोज करें।
‘करो संभव’ ने देश के 80 शहरों में कचरा इकट्ठा करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया है। इसमें से कचरा इक्ट्ठा करने और उन्हें अलग-अलग करने वाले करीब पांच हजार लोग जुड़े हैं। यह संगठित तरीके से होता है। हम इन लोगों को पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पहलुओं के बारे में प्रशिक्षित करते हैं। अब तक हमने 10 हजार टन से अधिक कचरा इकट्ठा करके रिसाइकिल किया है।
एसोचैम और नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार असुरक्षित ई-कचरे को रिसाइकिल करने के दौरान उत्सर्जित रसायनों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे और मस्तिष्क विकार, श्वसन संबंधी विकार, त्वचा विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और किडनी की बीमारियां पैदा हो सकती है।