भोपाल, मध्यप्रदेश में अभूतपूर्व संकट झेल रही लगभग सवा साल पुरानी कमलनाथ सरकार का संकट और बढ़ता जा रहा है। एक और कांग्रेस विधायक ऐदल सिंह कंसाना के त्यागपत्र देने के साथ ऐसा करने वाले विधायकों की संख्या बढ़कर 21 हो गयी है।
मुरैना जिले के सुमावली से विधायक श्री कंसाना ने अपने पद से त्यागपत्र विधानसभा सचिवालय भेज दिया है। माना जा रहा है कि वे भी शीघ्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो जाएंगे। इसके पहले वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं अनूपपुर से विधायक बिसाहूलाल सिंह ने भी त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन अौपचारिक तौर पर थाम लिया है।
वहीं बंगलूर में डटे 19 कांग्रेस विधायक अपना त्यागपत्र ईमेल से विधानसभा सचिवालय को भेज चुके हैं। इनमें लगभग पांच मंत्री भी शामिल हैं। ये सभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। कुछ वीडियो भी जारी हुए हैं, जिसमें ये 19 विधायक बंगलूर में किसी होटल में दिखायी दे रहे हैं और मध्यप्रदेश के कुछ भाजपा नेता भी उनके साथ हैं।
अब सभी की निगाहें पांच बजे यहां मुख्यमंत्री निवास पर होने वाली विधायक दल की बैठक पर लगी हुयी है। कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री निवास पहुंचना शुरू हो गए हैं। इसके बाद शाम सात बजे भाजपा विधायक दल की बैठक भी प्रदेश भाजपा कार्यालय में होगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता राज्य में सरकार बनाने की बात औपचारिक तौर पर भले ही नहीं कर रहे हैं, लेकिन अंदर ही अंदर इस दल ने अपनी सरकार बनाने के लिए ठोस रणनीति तैयार की है, जो अब सतह पर दिखायी देने लगी है।
दो सौ तीस सदस्यीय विधानसभा में आगर और जौरा विधानसभा सीट रिक्त हैं। शेष 228 सीटों में से कांग्रेस के 114, भाजपा के 107, बसपा के दो, सपा का एक और चार निर्दलीय विधायक हैं। कांग्रेस के 21 विधायकों के त्यागपत्र स्वीकार हो जाने की स्थिति में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 93 रह सकती है। हालाकि माना जा रहा है कि अभी कांग्रेस के और विधायकों के भी त्यागपत्र होंगे।
मध्यप्रदेश में नवंबर दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद पंद्रह सालों बाद कांग्रेस सत्ता में काबिज हुयी थी और श्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में 17 दिसंबर 2018 को शपथ ग्रहण की थी। कांग्रेस ने यह विधानसभा चुनाव श्री कमलनाथ और श्री ज्योतरादित्य सिंधिया का चेहरा आगे रखकर लड़ा था। तत्कालीन परिस्थितियों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने वाले श्री कमलनाथ की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद हुयी थी। इसके बाद अनेक बार श्री सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की भी मांग उठी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।