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UP में सिविल मामले को आपराधिक मामले में बदलने पर सुप्रीम कोर्ट ने की खिंचाई

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने सिविल मामलों को आपराधिक मामलों में बदलने पर सोमवार को उत्तर प्रदेश पुलिस की कड़ी आलोचना की और कहा कि इससे पता चलता है कि राज्य में कानून का शासन पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और के वी विश्वनाथन की पीठ ने एक मामले में आरोपी देबू सिंह और दीपक सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दीवानी (सिविल) मामले को आपराधिक मामले में बदलना स्वीकार्य नहीं है।

सिविल मामलों में पुलिस द्वारा दर्ज मुकदमा को देखते हुए पीठ ने पूछा, “सिर्फ इसलिए कि सिविल मामलों में लंबा समय लगता है, आप मुकदमा दर्ज कर आपराधिक कानून लागू कर देंगे।”

पीठ ने अधिकारियों के आचरण की आलोचना करते हुए कहा, “उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह गलत है। हर रोज सिविल मुकदमों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह बेतुका है और स्पष्ट किया कि सिर्फ पैसे न देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता।

पीठ ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि अगर भविष्य में इसी तरह की याचिकाएं दायर की जाती हैं तो वह हर्जाना लगाएगी।

पीठ ने कहा कि वह जांच अधिकारी को गवाह के कठघरे में आने का निर्देश जारी करेगी और अधिकारी गवाह के कठघरे में खड़े होकर आपराधिक मामला बनाएंगे और जांच अधिकारी को सबक सीखना चाहिए।

पीठ ने राज्य के वकील से कहा, “आप आरोपपत्र दाखिल करने का यह तरीका नहीं अपनाते।”

अदालत ने डीजीपी और गौतमबुद्ध नगर जिले के एक थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर से खास सवाल पूछे।

पीठ ने इन अधिकारियों से हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा कि (सिविल) दीवानी विवाद में आपराधिक कानून क्यों लागू किया गया।

शीर्ष अदालत ने नोएडा के सेक्टर-39 में संबंधित पुलिस थाने के जांच अधिकारी को गवाह के कठघरे में पेश होने और यह बताने का निर्देश दिया कि मामले में मुकदमा दर्ज करने की क्या जरूरत थी।

अदालत आरोपी देबू सिंह और दीपक सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे वकील चांद कुरैशी के जरिए दाखिल किया गया था।

याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार करने के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।

शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद नोएडा की निचली अदालत में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने का फैसला किया।

उच्चतम न्यायालय ने हालांकि स्पष्ट कर दिया कि उनके खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रहेगा। नोएडा में दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406, 506 और 120बी के तहत प्राथमिकी की दर्ज की गई है।

पुलिस पर चेक बाउंस के मामले में सिविल मुकदमे को आपराधिक मामले में बदलने के बाद आरोपपत्र दायर किया।

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि पुलिस ने इस मुद्दे को आपराधिक मामले में बदलने के लिए पैसे लिए।