लखनऊ, अब तक चुनावी बिसात पर पिता के सामने पुत्र और भाई के सामने भाई को शह मात देने के कई सच्चे वाकयों से सामने आये है लेकिन आज तक यह नहीं हुआ कि चुनाव लड़ने के लिए कोई पिता अपने बेटे को ही पराया घोषित कर दे, यानी कि उसे बाकायदा लिखा पढ़ी में किसी दूसरे को सौंप दे।
यह कहावत अक्षरशः सच साबित होती दिख रही है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। राज्य सरकार की दो से अधिक बच्चे होने पर पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक की प्रस्तावित कवायद से संभावित दावेदारों में खलबली मच गई है।
पंचायत चुनाव में धमाकेदर आमद दर्ज कराने का खाका खींच रहे दावेदारों ने अपने मंसूबों पर पानी फिरता देखा तो इसकी भी काट तलाश ली। दो से अधिक बच्चों वाले संभावित दावेदारो ने अपने तीसरे व चौथे बच्चे का अपने सगे भाई व अन्य नजदीकी रिश्तेदार को गोदनामा कराने के लिए अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया है। इसके लिए सलाह मशविरा के लिए अधिवक्ताओं के यहां दस्तक़ भी देनी शुरू कर दी है। इसके अलावा न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के मानक पर खरा उतरने के लिए हाईस्कूल की टीसी व मार्कशीट बनवाने के साथ प्राइवेट फार्म भरने की जुगत भी भिड़ाना शुरू कर दिया है। सबसे अधिक मशक्कत वर्तमान प्रधानों के साथ प्रधानी का चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों में मची हुई है। जिले में 248 ग्राम पंचायतें हैं।
अधिवक्ता हरिओम शर्मा ने बताया कि पंचायत में दो बच्चों से अधिक वाले चुनाव न लड़ पाने को लेकर सरकार की तैयारी से वर्तमान प्रधानों और संभावित दावेदारों में खलबली मच गई है। दो से अधिक बच्चों वाले अभी से अपनी तीसरी व चौथी संतान का गोदनामा अपने सगे भाई व नजदीकी रिश्तेदारों के नाम कराने की जुगत में लग गए हैं। कुछ संभावित दावेदारों ने तो अपने कागज भी तैयार करवा लिए हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता विनोद कुमार जैन व विशाल धामा ने बताया कि अचानक बड़ी संख्या में गांवों से लोग गोदनामा कराने के लिए आ रहे हैं। उन्हें स्पष्ट बता दिया गया है कि आठ साल से ऊपर बच्चे का गोदनामा नहीं किया जा सकता। गोदनामा कराने के लिए जैसे जमीन की रजिस्ट्री व बैनामा किया जाता है वैसे ही गोदनामा में दोनों पार्टियों के उसी तरह पेपर, फोटो समेत ऑनलाइन प्रक्रिया पूरी करनी होती है।
पंचायत चुनाव में प्रधान पद के लिए ही सबसे अधिक जोर आजमाइश होती है। दावेदार इस चुनाव को सीधे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर जीत के लिए हर जुगत अपनाते हैं। पिछले पंचायत चुनाव 2015 में हुए थे। इसलिए अक्टूबर-नवंबर 2020 में प्रधानों का कार्यकाल पूरा हो रहा है। वैसे तो अब तक पंचायत चुनाव की सरगर्मी उफान पर होती लेकिन कोरोना काल के चलते फिलहाल प्रक्रिया कुछ माह के लिए टाल दी गई है। अगले छह महीने तक पंचायत चुनाव के होने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं।
अलबत्ता समय करीब आते देख संभावित दावेदारों ने अपनी सक्रियता जरूर बढ़ा दी है। इसी बीच दो से अधिक बच्चे होने पर पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता पर सरकार के विचार करने की खबर ने प्रधानी हासिल करने का ख्वाब संजोने वालों की नींद उड़ा दी है। मौजूदा प्रधानों और संभावित दावेदारों ने चुटकियों में इन मानकों पर खरा उतरने का रास्ता तलाश भी लिया है और अपनी तीसरी या चौथी संतान का गोदनामा तैयार कराने में जुट गए। न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के लिए भी टीसी व मार्कशीट का प्रबंध करने की कवायद चल निकली है।
ग्राम प्रधान संघ पदाधिकारी रामबीर का कहना है कि पंचायत चुनाव में पद के लिए फर्जी अहर्ता तैयार कराना गलत है। झूठ की बुनियाद पर पद हासिल करने वाले विकास व जनता का हित नही कर सकते। सरकार की तरफ से जो भी गाइड लाइन जारी होगी, यदि उस पर खरे उतरे तो ठीक है। फर्जी तरीके से चुनाव लड़ना ठीक नहीं है।