लखनऊ, जंगलों में जीवन गुजराने को मजबूर वनटांगियां महिलाओं ने फैशन-शो के रैंप पर कैटवाक किया।
समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुके वनटांगिए अब आधुनिकता की दौड़ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार हैं।
वनटांगिया गांव की महिलाओं ने रैम्प वॉक किया।
इस दौरान महिलाओं ने स्वदेशी वस्त्र धारण कर स्वदेशी चीजों को बढ़ावा देने का संदेश दिया।
यह रैम्प वॉक गोरखपुर के कुस्मही बाजार में पूर्वी महोत्सव कार्यक्रम मे हुआ।
लायंस क्लब एवं यामिनी कल्चरल इंस्टीट्यूट इंटरटेनमेंट की ओर से इंटरनेशनल दिल्ली पब्लिक स्कूल, कुस्मही बाजार में पूर्वी महोत्सव का
आयोजन किया गया।
चेयर पर्सन सोनिका सिंह के अनुसार, कैटवाक के लिए 15 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई ।
वनटांगियां महिलाएं रैंप पर उतरने के दौरान असहज महसूस न करें, इसके लिए उनकी हेयर स्टाइल, मेकअप और कपड़ों में परंपरा का पूरा
ध्यान रखा गया।
पूर्वी महोत्सव में शिक्षा, चिकित्सा व सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों के विशिष्ट लोगों को सम्मानित किया गया।
इनमें डॉ. अजीज अहमद, डॉ. संजय जायसवाल, डॉ. आसिफ शकील, डॉ. एसके तिवारी, डॉ. आईवी विश्वकर्मा, सागर, आयशा, आभास, राम
नरेश चौधरी आदि शामिल रहे।
कौन हैं वनटंगिया
देश की आजादी से पहले अंग्रेजों ने जंगल लगाने के लिए कुछ लोगों को जंगल के बीच में ही बसा दिया था।
इन लोगों का काम जंगल में पेड़ लगाना और उसे बड़ा करना था जिससे उन्हे वहीं पर जीवनयापन करना पड़ता था।
आजादी के बाद भी इन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पायीं, क्योंकि ये जिस स्थान पर निवास करते थे वो वन विभाग के कानून के अंदर आता था।
जिससे वनटंगिया वहां पर किसी तरह का कोई निर्माण नहीं करा सकते थे।
इनके रहने के लिए इनके पास चार बाई चार की झोपड़ी रहती थी।
जंगलों के बीच से कच्चा रास्ता, बिजली पहुंची नहीं, बच्चों के पढ़ने की कोई सुविधा नहीं थी।