लखनऊ, (कमल जयंत, वरिष्ठ पत्रकार) यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के रण में प्रमुख मुद्दे क्या हैं। यह एक गंभीर सवाल है।
यूपी के विधानसभा के आखिरी चरण के प्रचार के अंतिम दिन सपा गठबंधन और भाजपा गठबंधन ने अपनी ताकत झोंकी और सभाओं में जुटी भीड़ के जरिये दोनों दलों के नेताओं ने मतदाताओं को यह सन्देश देने की कोशिश की है कि माहौल उनके पक्ष में ही है।
वैसे तीसरे चरण से लेकर तीन मार्च को हुए छठे चरण के प्रचार के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सभाओं में जो भीड़ जुटी, उनमें युवा बेरोजगारों की संख्या अधिक दिखी। प्रदेश के युवा अखिलेश यादव की सभाओं में अपनी मांगों के समर्थन में बैनर लेकर आये और उन्होंने इन बैनरों को सपा गठबंधन प्रत्याशियों के पक्ष में होने वाली सभाओं के मैदान में प्रमुखता से लगाया। बेरोजगार युवाओं ने ये बैनर मैदान में मंच के सामने लगाकर सपा प्रमुख का ध्यान अपनी समस्याओं की ओर खींचने का प्रयास किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अपनी हर सभाओं में युवाओं को यही भरोसा देते रहे कि सरकार बनने पर वह राज्य में खाली पड़े 11 लाख पदों को भरने के लिए रिक्तियां निकालेंगे। अखिलेश की सभाओं में शिक्षा मित्र से लेकर टीईटी परीक्षाथियों के संगठन के बैनर भी भारी तादाद में लगे दिखे।
वहीं,इस चुनाव में भाजपा मुफ्त राशन वितरण को लेकर काफी आश्वस्त दिखी। हालाँकि भाजपा नेतृत्व ने पहले चरण से लेकर आखिरी चरण तक के प्रचार के दौरान अपने हिंदुत्व के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का प्रयास किया और मुस्लिम माफियाओं के खिलाफ की गयी कार्रवाई को अपनी सभाओं में प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया।
वैसे यूपी में पहले चरण के दौरान किसानों की भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजगी का मुद्दा प्रमुख रहा, दूसरे चरण में मुस्लिम मतदाताओं की 40 फीसदी के एकतरफा मतदान करने के कारण भी ये चरण सपा गठबंधन के पक्ष में दिखाई दिया, तीसरे चरण से लेकर सातवें चरण तक के चुनाव में मुद्दे बदल गए, हालाँकि अभी सातवें चरण का मतदान सात मार्च को होना है, लेकिन पिछले तीन चरणों के मतदान में मंडल बनाम कमंडल का मुद्दा प्रभावी रहा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने सामाजिक गठबंधन के सहारे चुनाव मैदान में मजबूती से खड़े दिखे, वहीं भाजपा ने राममंदिर के निर्माण कराने के मुद्दे के साथ ही हिंदुत्व के एजेंडे पर राज्य की बहुसंख्यक आबादी को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की। इस चुनाव में बसपा कहीं भी मजबूती से लडती नहीं दिखी और आखिरी चरण के लिए होने वाले चुनाव के दौरान भी ये पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाई, जिसकी वजह से दलित वर्ग भी सपा गठबंधन के साथ मजबूती से खड़ा दिखाई दिया। ये वर्ग सातवें चरण में भी सपा गठबंधन के साथ ही मजबूती से खड़ा दिखाई दे रहा है।
इस सम्बन्ध में सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष और पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का कहना है कि दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने की खातिर बनायीं गयी बहुजन समाज पार्टी अपने इस मूल कार्य से हट चुकी है, और पार्टी प्रमुख बहुजन समाज को छोड़कर सर्वसमाज की बात करने लगीं हैं और उन्होंने दलित उत्पीड़न को लेकर हुए आंदोलनों से भी अपने को दूर रखा है, यही वजह रही कि बसपा का आधार वोट बैंक दलित बसपा से दूर हो गया और यह समाज सामाजिक भाईचारा स्थापित करने की कोशिश में जुटे सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ मजबूती से जुड़ गया है, इसका फायदा सपा गठबंधन को चुनावी नतीजों में भी दिखाई देगा।
दरअसल शोषित-वंचित दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक समाज को उनके अधिकार दिलाने के लिए ही बहुजन समाज पार्टी का गठन हुआ था, लम्बे समय से बसपा इन वर्गों की लड़ाई लडती नहीं दिख रही है, यही वजह है कि दलित वोट बसपा से दूर होता चला गया, ऐसे में समाजवाद के साथ अम्बेडकरवाद की बात करने वाली पार्टी सपा के पक्ष में दलित एकजुट हो गया।
सात मार्च को सातवें चरण के लिए होंने वाले चुनावी क्षेत्र में सामाजिक गैरबराबरी के आधार पर बनी व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे बहुजन समाज के लोगों की खासी आबादी है और इनकी जनसँख्या इन चरण में निर्णायक भी है, यही वजह है कि इस चरण में सपा गठबंधन के पक्ष में माहौल ज्यादा मजबूत दिख रहा है। इसके अलावा बेरोजगारी, महंगाई के साथ ही सपा गठबंधन की तरफ से सरकारी नौकरी देने का वादा युवाओं को काफी प्रभावित कर रहा है, और यही वजह है कि अखिलेश यादव की हर सभा में हजारों बेरोजगार युवा दिखते हैं। इतना ही नहीं मुफ्त राशन अगले पांच साल तक दिए जाने के सपा प्रमुख के वादे को लेकर भी इस योजना का लाभ उठा रहे करोड़ों गरीब भी सपा के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। वैसे बीएचयू में पढ़ने वाले युवाओं का कहना है कि राज्य में जबसे योगी जी आए हैं, अर्थव्यवस्था और शिक्षा का स्तर सब धरा का धरा रह गया है। ग्राउंड रिएलिटी यही है कि कोई खास सुधार नहीं दिखा है। हर बच्चा पढ़ बस इसलिए रहा है कि उसे नौकरी चाहिए। कॉलेज, कोर्सेज जैसी फैसिलिटीज देकर क्या फायदा जब पढ़ कर बच्चों को जॉब न मिले। ऐसी गवर्नमेंट का कोई मतलब नहीं जो हम लोगों को नौकरी न दे पाए। इसलिये यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के रण में सामाजिक न्याय के साथ-साथ रोजगार भी प्रमुख मुद्दे के रूप में शामिल है।?
(कमल जयंत, वरिष्ठ पत्रकार)