24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी की लाकडाऊन की घोषणा के बाद, बीच चौराहे पर मजदूरों को अकेला- अनाथ छोड़ देने वाली सरकार, उद्योगपतियों , प्रतिष्ठानों और औद्योगिक संगठनों को मात्र 11 दिन बीतते ही मजदूरों की याद आने लगी है। करोड़ों अरबों का धंधा, दो जून की रोटी को मोहताज मजदूरों के बिना चौपट हो रहा है। मजदूरों के न मिलने से अब आवश्यक चीजों का उत्पादन, स्टोरेज और आपूर्ति भी प्रभावित हो रही है।
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500 से 1000 किलोमीटर की पैदल यात्रा मे जो कष्ट और अपमान मजदूरों ने, उनकी महिलाओं और छोटे-छोटे बच्चों ने सहे वो ह्रदय विदारक है। कईयों ने तो रास्ते मे ही दम तोड़ दिया। हालात ये हैं कि जो मजदूर अपने गांव घर पहुंच गयें हैं वे इतनी दहशत मे हैं कि वे अब अपना घर गांव छोड़कर वापस नही आना चाहतें हैं। जबकि जो मजदूर अभी अपने गांव घर भी नही पहुंच पायें हैं और बीच मे ही शेल्टर होम या अन्य स्थानों पर फंसे हैं, वह भी वापस काम पर नही बल्कि अपने घर गांव जाना चाह रहें हैं। अब एसे मे तो बात फिर धंधे की फंस जाती है।
इन परिस्थितियों को देखते हुये, एक बैठक के दौरान उद्योग जगत् के प्रतिनिधियों ने अपना रोना रोते हुये सरकार को मजदूरों को लालीपाप देकर लुभाने से लेकर उनकी चूड़ी टाईट करने जैसे सुझाव दे डालें हैं। लेकिन लगता है अबकी पासा उल्टा पड़ गया है।
विस्तार से देखिये ये रिपोर्ट-
मजदूरों के न मिलने से कई उद्योगों पर छाया बड़ा संकट, सरकार से कर डाली ये मांग ?