महिलाओं की हड्डियाँ तेज़ी से कमज़ोर क्यों होती हैं?

हड्डियों की मज़बूती को अक्सर उम्र बढ़ने से जोड़ा जाता है, लेकिन कई महिलाओं में यह समस्या उम्मीद से कहीं पहले शुरू हो जाती है। फ्रैक्चर या लगातार दर्द होने से पहले ही, हड्डियों के ढांचे में छोटे-छोटे बदलाव चुपचाप नुकसान पहुँचाने लगते हैं।
महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी एक गंभीर लेकिन अक्सर नज़रअंदाज़ की जाने वाली समस्या है। हार्मोनल बदलाव, मेनोपॉज़ और विटामिन D की कमी के कारण महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा तेज़ी से बढ़ रहा है। समय पर जांच और सही लाइफस्टाइल अपनाकर इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों से जुड़ी सबसे आम मेटाबॉलिक बीमारियों में से एक है। यह बीमारी बिना किसी स्पष्ट लक्षण के धीरे-धीरे बढ़ती है और अक्सर तब सामने आती है जब हड्डियाँ काफ़ी कमज़ोर हो चुकी होती हैं। दुनिया भर में 200 मिलियन से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या कहीं ज़्यादा है।
हार्मोनल बदलाव और हड्डियों की कमजोरी
कैलाश दीपक हॉस्पिटल और कैलाश हॉस्पिटल (नोएडा) के कंसल्टेंट ऑर्थोपेडिक्स व स्पोर्ट्स इंजरी विशेषज्ञ डॉ. विनय कुमार अग्रवाल के अनुसार, महिलाओं में हड्डियों की डेंसिटी कम होने का एक बड़ा कारण हार्मोनल बदलाव है।
प्रेग्नेंसी, मेनोपॉज़ और पोस्ट-मेनोपॉज़ के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर घटने लगता है, जो हड्डियों को मज़बूत बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
मेनोपॉज़ के बाद के शुरुआती वर्षों में महिलाओं की हड्डियों का नुकसान 20% तक हो सकता है। यही वजह है कि पोस्ट-मेनोपॉज़ल महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सबसे ज़्यादा पाया जाता है। आज महिलाएँ अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा इस कमजोर चरण में बिताती हैं, जिससे फ्रैक्चर का जोखिम और बढ़ जाता है।
हड्डियों का कमजोर होना कब खतरनाक बन जाता है?
ऑस्टियोपोरोसिस को “साइलेंट डिज़ीज़” कहा जाता है, क्योंकि शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते। बीमारी बढ़ने पर इसके लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं:
पीठ या कमर में लगातार दर्द
लंबाई का धीरे-धीरे कम होना
झुकी हुई मुद्रा
मामूली गिरने से भी हड्डी टूट जाना
रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर से फेफड़ों की क्षमता भी कम हो सकती है, जिससे बिना मेहनत के भी सांस फूलने लगती है।
दुनिया भर में हर साल लगभग 20 लाख ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर सामने आते हैं। इनमें कूल्हे और रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर सबसे गंभीर माने जाते हैं, जो चलने-फिरने की क्षमता और जीवन की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
भारत में महिलाओं की हड्डियों का बढ़ता संकट
भारत में ऑस्टियोपोरोसिस एक गंभीर लेकिन अनदेखी समस्या है। अनुमान के अनुसार:
लगभग 6.1 करोड़ भारतीय ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं
भारत में ऑस्टियोपीनिया की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा है
पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में फ्रैक्चर 10–12 साल पहले हो जाते हैं
इसका एक बड़ा कारण विटामिन D की कमी है, जो शहरी आबादी के लगभग 80% लोगों में पाई जाती है। विटामिन D की कमी से कैल्शियम शरीर में ठीक से अवशोषित नहीं हो पाता, जिससे हड्डियाँ तेज़ी से कमज़ोर होने लगती हैं।
हड्डियों को मज़बूत रखने के असरदार उपाय
हड्डियों का कमजोर होना ज़रूरी नहीं है। सही समय पर देखभाल से इस प्रक्रिया को काफ़ी हद तक धीमा किया जा सकता है।
समय पर जांच
50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएँ
मेनोपॉज़ के बाद की महिलाएँ
जिनकी फैमिली हिस्ट्री हो
उन्हें बोन मिनरल डेंसिटी (BMD) टेस्ट ज़रूर करवाना चाहिए।
नियमित एक्सरसाइज़
तेज़ चलना
रेज़िस्टेंस ट्रेनिंग
योग और बैलेंस एक्सरसाइज़
ये गतिविधियाँ हड्डियों को मज़बूत बनाती हैं और गिरने का खतरा कम करती हैं।
सही पोषण
कैल्शियम और विटामिन D से भरपूर आहार
हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ
नट्स, फलियाँ, साबुत अनाज
फ़र्मेंटेड फूड और हेल्दी फैट
यह डाइट हड्डियों की डेंसिटी बढ़ाने और मिनरल एब्ज़ॉर्प्शन में मदद करती है।
लाइफस्टाइल सुधार
तंबाकू और शराब से दूरी
पर्याप्त धूप लेना
एक्टिव लाइफस्टाइल अपनाना
निष्कर्ष
ऑस्टियोपोरोसिस भले ही बिना आवाज़ के बढ़ता हो, लेकिन इसके परिणाम गंभीर होते हैं। सही जानकारी, हेल्दी लाइफस्टाइल, समय पर जांच और मेडिकल सलाह से महिलाओं में हड्डियों के कमजोर होने की प्रक्रिया को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है। मजबूत हड्डियाँ ही सक्रिय, स्वतंत्र और स्वस्थ जीवन की नींव होती हैं।





