नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने कोरोना वायरस ‘कोविड 19’ महामारी के मद्देनजर रोजी-रोजगार छिनने के कारण परेशान हॉकरों, रिक्शाचालकों और दिहाड़ी मजदूरों को निश्चित भुगतान संबंधी याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इन्कार कर दिया।
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कॉल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान हर्ष मंदर और अंजलि भारद्वाज की याचिकाएं खारिज कर दी।
न्यायालय ने कहा कि वह प्रवासी मजदूरों को एक निश्चित राशि के भुगतान का निर्देश केंद्र सरकार को नहीं दे सकता, क्योंकि यह सरकार के वित्तीय मामलों में हस्तक्षेप होगा।
न्यायमूर्ति रमन ने कहा, “देश असामान्य स्थिति से गुजर रहा है और ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार को हम नहीं कह सकते कि वह कैसे काम करे और कौन सी योजना लागू करे।”
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि उन्होंने 11 हज़ार दिहाड़ी मजदूरों में सर्वेक्षण किया है। उसके मुताबिक सरकारी दावे के उलट किसी को भी अब तक पैसा नहीं मिला है और किसी के खाते में रकम नही आई है।
इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तल्ख लहजे में विरोध किया। उन्होंने कहा, “यह कहना गलत है कि किसी को भी मदद के रुपये या राशन नहीं मिला। देशभर में 50 हजार से ज़्यादा गैर-सरकारी संगठन सरकारी इंतज़ाम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गरीबों, वंचितों को राशन या खाना बांट रहे हैं, पर कुछ लोगों को यह दिख नहीं रहा क्योंकि वे केवल जनहित याचिका फाइल करने में जुटे हैं।”
श्री भूषण ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरों में से 76 फीसदी लोगों को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा है।
इस बीच सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश की इसी तरह की एक याचिका की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि कई राज्यों ने 27 मार्च को दिए गए आदेश के बावजूद अब तक आंगनवाड़ी योजना के तहत भोजन वितरण का काम शुरू भी नहीं किया है।