अयोध्या, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में लाखों श्रद्धालुओं ने मंगलवार को प्रसिद्ध 14 कोसी परिक्रमा की और रामलला का दर्शन पूजन किया।
अक्षय नवमी तिथि पर सरयू स्नान करने के बाद कई लाख श्रद्धालुओं ने प्रसिद्ध चौदह कोसी परिक्रमा नंगे पांव की।24 घंटे चलने वाली परिक्रमा आज रात में11:48 बजे समाप्त होगी। परिक्रमा में ज्यादातर मेलार्थी अयोध्या के अगल-बगल जिलों के गांवों से आये हुए थे। ये लोग दो दिन पूर्व ही अयोध्या में विभिन्न मंदिरों में अपना-अपना स्थान ले करके रुके हुए थे। जिस दिन परिक्रमा शुरू होने वाला था, उस दिन सरयू स्नान करने के बाद नये घाट से परिक्रमा शुरू करके उसी स्थान पर समाप्त करते थे। परिक्रमा में किसी भी प्रकार की कोई घटना नहीं घटित हुई है। प्रशासन ने खोया-पाया कैम्प की व्यवस्था की थी और जगह-जगह पर खान-पान की नि:शुल्क व्यवस्था भी श्रद्धालुओं के लिये लोगों ने किये हुए थे।
परिक्रमा के दौरान जिला प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम के साथ-साथ जगह-जगह पर बैरीकेडिंग लगाये हुए थे जिससे श्रद्धालुओं को परिक्रमा करने में कोई दिक्कत का सामना न करना पड़े। हर जगह सुरक्षा बल तैनात था। मजिस्ट्रेटों की तैनाती भी की गयी थी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मण्डलायुक्त गौरव दयाल और जिलाधिकारी नितीश कुमार, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राजकरण नैय्यर बराबर परिक्रमा में निरीक्षण कर रहे थे। किसी भी हालात में श्रद्धालुओं को दिक्कतों का सामना न करना पड़े, इसके लिये ये अधिकारी मजिस्ट्रेटों से जाकर मिल रहे थे।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बड़ा परिक्रमा अर्थात् चौदह कोसी परिक्रमा का सीधा सम्बन्ध मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से है। किदवंतियों के अनुसार भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास से अपने को जोड़ते हुए अयोध्यावासियों ने प्रत्येक वर्ष के लिये एक कोस परिक्रमा की होगी। इस प्रकार चौदह कोस के लिए चौदह कोस परिक्रमा शुरू किया, तभी से यह परम्परा बन गयी है। उस परम्परा का निर्वाह करते हुए आज भी कार्तिक अमावस्या अर्थात् दीपावली के नवें दिन श्रद्धालु यहां आकर करीब 42 किलोमीटर अर्थात् चौदह कोस की परिक्रमा एक निर्धारित मार्ग पर अयोध्या व फैजाबाद नगर तक चौतरफा नंगे पांव चलकर अपनी-अपनी परिक्रमा पूरी करते हैं।
कार्तिक महीने के शुल्क पक्ष की अष्टमी को शुरू होने वाले इस परिक्रमा में ज्यादातर श्रद्धालु ग्रामीण अंचलों से ही आते हैं। एक-दो दिन पूर्व यहां आकर अपने परिजनों व साथियों के साथ विभिन्न मंदिरों में शरण लेते हैं और परिक्रमा के निश्चित समय पर सरयू स्नान कर अपनी परिक्रमा शुरू कर देते हैं जो उसी स्थान पर पहुंचने से पुन: शुरू होती है। ज्यादातर लोग चलकर अपनी परिक्रमा पूरी कर रहे हैं। जिला प्रशासन के द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी पूरे परिक्रमा में चाय-पान, बिस्किट और खाने-पीने के सामान के अलावा चिकित्सा सम्बन्धित सामान भी श्रद्धालुओं को पण्डाल लगाकर सेवा कर रहे हैं।