अहमदाबाद, जेल में बंद पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने गुजरात उच्च न्यायालय से कहा कि जमानत देने के लिए अदालत उचित समझकर जो भी शर्त लगाएगी उसे वह स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। इसमें छह महीने के लिए राज्य से बाहर रहने की शर्त भी शामिल है। न्यायमूर्ति एजे देसाई ने हार्दिक की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया जब अभियोजन और बचाव पक्ष के वकीलों ने अपनी दलीलें पूरी कर लीं। सूरत और अहमदाबाद में अपने खिलाफ दर्ज राजद्रोह के दो अलग-अलग मामलों में हार्दिक आरोपी हैं।
हार्दिक ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण की मांग को लेकर पटेलों के हिंसक आंदोलन के मद्देनजर पिछले साल गिरफ्तारी के बाद से सूरत जेल में बंद हैं। जमानत याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील मितेश अमीन ने अदालत से कहा कि सरकार को आशंका है कि हार्दिक अपने अपराध को दोहरा सकते हैं और जेल के बाहर उनकी मौजूदगी से राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति खतरे में पड़ सकती है। दलील का विरोध करते हुए हार्दिक के वकील जुबिन भरदा ने कहा कि हार्दिक को इस बात पर ऐतराज नहीं होगा, भले ही उच्च न्यायालय उन्हें इस शर्त पर जमानत दे कि वह अगले छह महीने के लिए गुजरात से बाहर रहें। इस पर अमीन ने कहा कि हार्दिक को गुजरात के बाहर रखने से किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी क्योंकि वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अपने समुदाय के सदस्यों को भड़काना जारी रख सकता है। इसके लिए राज्य में उसकी शारीरिक मौजूदगी की जरूरत नहीं है।पिछली सुनवाइयों के दौरान सरकार ने जमानत के लिए लिखित शपथ पत्र की हार्दिक की पेशकश को स्वीकार करने से मना कर दिया था। हार्दिक ने कहा था कि वह ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति प्रभावित हो लेकिन शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से पाटीदार समुदाय की शिकायतों के लिए आंदोलन जारी रखेगा।