नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने का सुनियोजित प्रयास किया जाता है तो अदालतों को ऐसा करने वालों को दंडित करने के लिये अवमानना के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए।
न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति एन नागेश्वर राव की पीठ ने हाल ही में एक फैसले में अपनी व्यवस्था में कहा, संविधान के अनुच्छेद 19 में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को सीमित करने वाले बिन्दुओं में एक अदालत की अवमानना है। हम सचेत हैं कि अवमानना कानून के तहत इस अधिकार का सामान्य तरीके से नहीं बल्कि कभी कभी ही इस्तेमाल करना होगा। पीठ ने अवमानना के एक मामले में राजस्थान हाई कोर्ट का निर्णय बरकरार रखते हुये अपने फैसले में कहा कि यदि न्यायपालिका के महत्व को कम करके आंकने का सुनियोजित प्रयास किया जाता है तो अदालतों को अवमानना करने वाले को दंडित करने के लिये अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने इस मामले के तथ्यों को देखते हुये हाई कोर्ट के फैसले में सुधार करते हुये कहा कि अवमानना के दोषी प्रत्येक व्यक्ति को जेल की सजा भुगतने की बजाये सिर्फ दो दो हजार रूपये जुर्माना अदा करना होगा। हाई कोर्ट ने माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के चार कार्यकर्ताओं को न्यायपालिका के प्रति आपत्तिजनक बयान देने के मामले में दो महीने की कैद की सजा सुनायी थी। इन कार्यकर्ताओं ने 18 दिसंबर 2000 को श्रीगंगानगर जिले के एक ट्रेड यूनियन नेता की हत्या के मामले में हाई कोर्ट द्वारा फरवरी, 2001 में कुछ आरोपियों को अग्रिम जमानत दिये जाने पर ये बयान दिये थे।