आसिफा को समर्पित कविता
‘*ना बेटी बची, ना बेटी पढ़ी*’ : सूरज कुमार बौद्ध *ना बेटी बची, ना बेटी पढ़ी*
ना बेटी बची, ना बेटी पढ़ी, सिसक सिसक कर बेटी मरी।
महज आठ साल की नन्हीं सी प्यारी बेटी और तुम बलात्कारियों का झुंड,
बुझाते रहे अपने हवस को। मगर तुम्हारी हवस न बुझी, अंततः बेटी लाश बन गई।
उसी मंदिर में जहां देवी देवता विराजमान हैं।
क्या उन्हें बेटी की आवाज नहीं आई ? दरिंदों को एक पल भी लाज नहीं आई ?
बेटियों को बचाने की जरूरत है तुम गुंडों से लम्पटों से,
जिनका ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ एक नारा नहीं बल्कि धमकी है,
जिन्हें सिर्फ सत्ता की प्यास है वही सत्ता जो हजारों वर्षों से लूट अत्याचार की कहानी है।
कभी शूद्रों पर, अछूतों पर व्यथाओं पर, महिलाओं पर…।
याद करो बहन फूलन का अदम्य साहस-स्वाभिमान…. कि चलो क़त्ल कर दें मनुवादी पितृसत्ता को बंदूक की गोलियों से।
और स्थापित करें स्वाभिमान की ललकार हरपल…. हरदम… बारंबार….
#JusticeForAsifa *- सूरज कुमार बौद्ध,* *(रचनाकार भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)*