भोपाल, मध्यप्रदेश के दलित आईएएस अधिकारी रमेश थेटे ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके आला अधिकारियों पर बार-बार प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया है. थेटे ने कहा है कि उनके लिऐ वैसे ही हालात पैदा किए जा रहे हैं जिन हालात में दलित छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या की थी. थेटे ने आशंका व्यक्त की है कि मेरे साथ कोई भी अनहोनी घटना हो सकती है. यदि मेरे साथ कुछ भी गलत घटित होता है तो इसके लिए जवाबदार लोगों के नाम आप सभी को एक बंद लिफाफे में मिलेंगे.
उन्होंने कहा कि पन्ना जिले में 70 करोड़ रुपए की लागत से बने दो बांध निर्माण के एक साल के भीतर ही पहली बारिश में ढह गए. इसकी जिम्मेदारी जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव जुलानिया की बनती है, लेकिन मुख्यमंत्री जुलानिया को बचा रहे हैं क्योंकि उनकी भी इसमें संलिप्तता हो सकती है. थेटे ने कहा कि जुलानिया द्वारा एसटी, एससी वर्ग के लोगों को जबरदस्ती हटाकर जल संसाधन विभाग के प्रमुख अभियंता (ईएनसी) एमजी चौबे को काम दिया गया. पन्ना जिले में बांध बनाने के लिए को सेवानिवृत्त होने के बाद भी पांच बार सेवा में विस्तार दिया गया जबकि इससे अधिक काबिल लोग थे जो ये काम कर सकते थे. थेटे ने कहा कि मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया की शिकायत की थी. मैंने उन्हें बताया था कि जुलानिया मेरे साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं. वे समता के सिद्धांत पर न्यायपूर्ण कार्य विभाजन नहीं कर रहे हैं और उन्होंने मेरे लगभग सारे अधिकार छीन कर मुझे अछूत घोषित कर दिया है. मैंने यह शिकायत मय सबूतों के की थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने जुलानिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते हुए, उल्टा मुझे ही कारण बताओ नोटिस जारी करवा दिया.
थेटे ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुख्यमंत्री और प्रदेश के आला अधिकारियों की मिलीभगत से प्रदेश में हो रहे कारनामों की जांच सीबीआई से कराने की अपील करता हूं.
मेरे जैसे दलित अधिकारी, जो आंबेडकरवादी है, समता, न्याय, बंधुत्व की बात करता है उसे दबाना चाह रहे हैं. ऐसे हालात पैदा कर ये चाह रहे हैं कि मैं रोहित वेमूला जैसे आत्महत्या करूं, क्योंकि इनको कोई चुनौती नहीं देता. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थेटे ने खुलकर राज्य सरकार के खिलाफ बयान दिए। उन्होंने कहा कि जुलानिया भ्रष्ट अधिकारी है. राज्य सरकार दलितों की हितैषी सरकार होने का दावा करती है जो फर्जी है, उसे एससी-एसटी के केवल वे ही लोग पसंद हैं जो उनके पैरों में पड़े रहते हैं. सामाजिक समरसता की बातें फर्जीवाड़ा हैं.