नई दिल्ली, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर भारत का एक बड़ा सही साबित हुआ। कई मुस्लिमों देशों के नागरिकों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगाने के बाद ट्रंप प्रशासन ने एच-वन बी वीजा लेने वाले विदेशी पेशेवरों के वहां आने को हतोत्साहित करने के लिए अहम प्रस्ताव पेश किया है। इसके तहत इस वीजा का फायदा उठाने वाली कंपनियों को अब वीजाधारकों को दोगुनी तनख्वाह देनी होगी। माना जा रहा है कि भारत में सॉफ्टवेयर विकास से जुड़ी कंपनियों के लिए यह बहुत बड़ा धक्का है क्योंकि ज्यादा वेतन देने की वजह से उनकी लागत बढ़ेगी और अब उनके लिए भारतीयों की जगह पर अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देना ज्यादा आसान रहेगा।
बहरहाल, भारत ने अमेरिकी सरकार के इस प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जताई है। लेकिन ट्रंप प्रशासन के रवैये को देखते हुए इसका असर होने की संभावना कम है। अमेरिका की तरफ से हर वर्ष दिए जाने वाले एच-वन बी वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारतीय आइटी कंपनियां ही उठाती हैं। पिछले वर्ष 86 फीसद एच-वन बी वीजा भारतीय कंपनियों के कोटे में आई थी। कई जानकारों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन का यह प्रस्ताव सॉफ्टवेयर विकास से जुड़ी भारतीय आइटी कंपनियों के लिए करारा झटका है। इससे भारत के 150 अरब डॉलर के सॉफ्टवेयर उद्योग की कमर टूट जाने की बात की जा रही है। इस डर से देश के शेयर बाजार में आइटी कंपनियों के शेयर बुरी तरह से लुढ़क गये। यही वजह है कि एक तरफ विदेश मंत्रालय ने इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है और अमेरिका से भी अपनी चिंताओं से अवगत कराया है। जबकि आइटी कंपनियों के संगठन नासकॉम ने मामले को बेहद गंभीर बताते हुए अगले कुछ हफ्ते में अपना एक दल अमेरिका भेजने की बात कही है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि, इस बारे में भारत की चिंताओं को अमेरिकी प्रशासन व कांग्रेस को उच्च स्तर पर अवगत करा दिया गया है। यह पिछले दो महीने में दूसरा मौका है जब भारत ने इस विषय में अपनी चिंता जताई है। इसके पहले नवंबर, 2016 में विदेश सचिव एस जयशंकर ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान ट्रंप के सहयोगियों के साथ वार्ता में इस मुद्दे को उठाया था। यह मुद्दा भारत के लिए हमेशा अहम रहा है। पूर्व में पीएम नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच हुई शीर्ष वार्ता में भी यह उठा था। बरहहाल, अब देखना होगा कि अगर ट्रंप इस फैसले को लागू करते हैं तो इसको दोनों देश किस तरह से सुलझाने की कोशिश करते हैं। नासकॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि यह प्रस्ताव अमेरिका में पेशेवरों की कमी को दूर करने की कोशिश नहीं करती है बल्कि वहां के उद्योगों के लिए दिक्कतें पैदा करने वाली है। माना जा रहा है कि अमेरिका का यह फैसला भारत की टीसीएस, इंफोसिस जैसी कंपनियों के लिए बहुत बुरा साबित होगा। ये कंपनियां मजबूत होते डॉलर से पहले ही परेशान हैं। इस फैसले से इन कंपनिोयं की वेतन लागत में 60-70 फीसद तक बढोतरी हो सकती हैं। ऐसे में ये ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी नहीं रह पाएंगी।