आर.टी.आई. द्वारा प्राप्त की गयी सूचना से पता चला कि केंद्र सरकार की नौकरियों में मात्र 12% प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधि हैं । 52% प्रतिशत ओ.बी.सी. का सत्ताईस प्रतिशत कोटा भी केंद्र सरकार 25 साल बाद भी लागू नही कर पायी। ओ.बी.सी को सोचना चाहिए कि आखिर उनका हिस्सा कौन खा रहा है। अनुसूचित जाति भी नही खा रही क्योंकि वो भी 12 प्रतिशत हैं । मतलब घोषित आबादी 15% प्रतिशत से भी 3% प्रतिशत कम उसी प्रकार अनुसूचित जनजाति जिसकी जनसँख्या 7.5 प्रतिशत है उसका भी प्रतिनिधित्व मात्र 4% प्रतिशत है। मतलब 75% प्रतिशत एस.सी/एस.टी और ओ.बी.सी. का केंद्र सरकार की नौकरियों में प्रतिनिधित्व मात्र 28% प्रतिशत है। इनके हिस्से का 47% प्रतिशत कौन खा रहा है ? वो लोग जो 15% प्रतिशत हैं और आरक्षण का विरोध करते हैं। उधर ओ.बी.सी समझता है कि एस.सी/एस.टी हमारे हक़ को खा रहा है जबकि उनको उनके हक़ का भी पूरा हिस्सा नही मिल रहा। ओ.बी.सी को चाहिए कि वो पहचानें कि हमारा दुश्मन कौन हैं । ओ.बी.सी को अपने अधिकार के लिए आगे आना चाहिए और अपने पूरे प्रतिनिधित्व को प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा देना चाहिए।
मोदी जी जो खुद को दलित आदिवासी बताते फिर रहे हैं उनको तुरंत ही विशेष अभियान चलाकर ओ.बी.सी, एस.सी और एस.टी का कोटा भरें वर्ना भूल जाये कि ये लोग मोदी जी को वोट देंगे ।