नई दिल्ली, केंद्र सरकार को देश की जनता के बारे में भी कम से कम कुछ सोचना चहिए। क्या सरकार के पास देश की जनता के लिए पैसे नहीं हैं ? सरकार को जनता के हित के बारे में पहले सोचना चाहिए। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने देश के 12 सूखाग्रस्त राज्यों के मामले में सुनवाई करते हुए की है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को कहा कि कल आपके अधिकारी कोर्ट मे मौजूद थे, फिर भी सरकार ने ड्रॉट (सूखा) मेन्युअल और ड्रॉट (सूखा) मैनेजमेंट गाइडलाइन कोर्ट को नहीं दी। सरकारी अधिकारियों को टीए और डीए मिलता होगा। क्या ये पैसा एसी रूम में बैठने का मिलता है ? अफसरों की समस्या क्या है ? आप कोर्ट को जरूरी दस्तावेज उपलब्ध क्यों नहीं करा रहे हैं ? हालात बदतर हो गए हैं।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को किसानों को सूखे की मार से बचाने के लिए तीन सुझाव दिए हैं। पहले सुझाव के तौर पर कहा गया कि मानसून के पहले सैटेलाइट के माध्यम से पता लगाया जाए कि उस हिस्से में बारिश का क्या अनुमान है, जिससे कि समय रहते जिन इलाकों में बारिश कम या ज्यादा होनी है, उन इलाकों के किसानों और राज्य सरकारों को चेताया जा सके। इससे नुकसान कम होगा। दूसरे सुझाव के तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानसून के वक्त भी सैटेलाइट के जरिए मौसम की दिशा पर नजर रखी जाए और राज्य सरकार व किसानों को अलर्ट जारी किया जाए। तीसरे सुझाव के तौर पर मानसून के बाद की स्थिति को भी सैटेलाइट के माध्यम से देखा जा सकता है और सूखा इत्यादि के हालात का पोस्टमार्टम की तरह आकलन किया जा सकता है।
देश के 12 सूखाग्रस्त राज्यों के किसानों की मदद के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को याचिकाकर्ता संस्था स्वराज अभियान के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि देश के कई राज्यों में अभी भी ड्रॉट (सूखा) मैनेजमेंट सेल और डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी नहीं बनी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद सरकार से पूछा कि कितने राज्यों में सूखा मैनेजमेंट सेल और डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी है। वहीं, वकील प्रशांत भूषण ने हरियाणा सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने कोर्ट को गुमराह किया है। बारिश का जो डाटा राज्य सरकार की तरफ से पिछले साल का पेश किया गया वो केवल दो महीने का था, जबकि नियम के मुताबिक अगर पूरे मानसून में 75 फीसदी से कम बरसात होती है तो उस हिस्से को सूखाग्रस्त घोषित कर देते हैं। लेकिन राज्य सरकार ने केवल दो महीने का डाटा पेश कर ये बताने की कोशिश की कि राज्य में सूखे के हालात नहीं है। इसलिए वे राज्य को सूखाग्रस्त घोषित नहीं कर सकते। याचिकाकर्ता ने कहा कि हरियाणा में कई ऐसे जिले हैं, जहां 60 फीसदी से भी कम बारिश हुई है। अगर हम तहसील के मुताबिक जाते हैं तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है। सरकार ने पूरा डाटा न देकर कोर्ट को गुमराह किया है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कल भी होगी। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को देश के 12 राज्यों में सूखे के हालात को लेकर स्वराज अभियान की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को कहा था कि जैसा उन्होंने अपने हलफनामे में कहा था कि केंद्र सरकार की ओर से हरियाणा को कहा गया था कि आप सूखा घोषित करो, लेकिन हरियाणा ने नहीं किया था। क्या कोर्ट किसी राज्य सरकार को ये कह सकती है कि आप इन पैरामीटर के तहत राज्य के इस हिस्से को सूखाग्रसित घोषित करे? सूखाग्रस्त राज्यों में मनरेगा पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या कोर्ट राज्य सरकार को डिजास्टर रिलीफ फंड का पैसा मनरेगा में इस्तेमाल करने की इजाजत दे सकती है? अगर ऐसा कोई प्रावधान है तो वो किस नियम के तहत है? पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि कोई मंत्री अपने निजी हित के लिए किसी राज्य के खास हिस्से को सूखाग्रस्त घोषित कर देता है तो क्या कोर्ट इस पर अंकुश लगा सकती है? कोर्ट ने कहा कि हमने ऐसे कई मामले देखे हैं जिनमें नेता अपने निजी हित के लिए ऐसा करते हैं। कोर्ट ने कहा कि प्राकृतिक आपदा के समय मंत्री पैसा बांट देते है, ऐसे में क्या उसके लिए नियम बनाए जाने चाहिए ? उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट स्वराज अभियान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। याचिका में मांग की गई है कि देश के 12 राज्य भीषण सूखे की चपेट में हैं और ऐसे में लोगों को सूखे से निजात दिलाने के लिए राज्यों के साथ केंद्र सरकार को भी उचित कार्रवाई करने का आदेश दिया जाना चाहिए।