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गोवा, मणिपुर के राज्यपालों की भूमिका पर चर्चा की मांग

Manohar-Parrikar-1नई दिल्ली,  गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने के बाद सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए न बुलाए जाने को लेकर वहां के राज्यपालों की कथित भूमिका के संबंध में राज्यसभा में आज कांग्रेस सदस्यों ने चर्चा कराये जाने की मांग की। सदन की बैठक शुरू होने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि उन्होंने संबंधित राज्यपालों के आचरण पर चर्चा करने के लिए नियम 168 के तहत एक समुचित प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि वह जानना चाहते हैं कि इस प्रस्ताव पर कब विचार किया जाएगा।

उप सभापति पीजे कुरियन ने कहा कि सिंह द्वारा दिया गया नोटिस मिल गया है और उस पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब सभापति इस नोटिस की स्वीकार्यता पर फैसला कर लेंगे तो सिंह को इसकी सूचना दे दी जाएगी। सिंह ने कहा कि राज्यपालों ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और यह लोकतंत्र की हत्या है। उन्होंने कहा कि राज्यपालों का यह आचरण स्थापित मानकों और संवैधानिक नियमों के विरूद्ध है।

साथ ही सिंह ने यह भी अनुरोध किया कि उनके प्रस्ताव पर फैसला शीघ्र किया जाए अन्यथा इसकी प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी। उन्होंने कहा कि गोवा और मणिपुर दोनों राज्यों में कांग्रेस अकेले सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और उसके पास सरकार बनाने से इंकार करने का पहला अधिकार था। गौरतलब है कि शुक्रवार को सिंह ने नियम 267 के तहत एक नोटिस दे कर कामकाज निलंबित करने और गोवा के घटनाक्रम पर चर्चा करने की मांग की थी। लेकिन आसन ने इससे यह कहकर इंकार कर दिया था कि राज्यपाल के आचरण पर समुचित प्रस्ताव के तहत ही चर्चा की जा सकती है।

कांग्रेस के आनंद शर्मा ने भाजपा पर छल से जनादेश का हरण करने का आरोप लगाया। हालांकि कानून एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि लोकतंत्र की हत्या शब्दों को कार्यवाही से हटा दिया जाना चाहिए। उनकी बात का कांग्रेस एवं वाम सहित अन्य विपक्षी दलों से विरोध किया। माकपा के तपन कुमार सेन ने कहा कि लोकतंत्र की हत्या शब्द असंसदीय नहीं हैं और इन्हें कार्यवाही से नहीं हटाया जाना चाहिए। प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस की अंदरूनी समस्या का दोष राज्यपाल पर नहीं मढ़ना चाहिए।

जदयू के शरद यादव ने सिंह के प्रस्ताव पर शीघ्र विचार किए जाने की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि बृहस्पतिवार और शुक्रवार को यह मुद्दा उठाए जाने पर ऐसा संकेत दिया गया था कि इसे सोमवार को लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि विलंब होने पर इसकी प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी। कुरियन ने कहा अगर प्रस्ताव दिया गया है तो उसके लिए एक प्रक्रिया होती है। सभापति को प्रस्ताव की स्वीकार्यता पर विचार करना होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि वह सदस्यों की भावना से सभापति को अवगत करा देंगे। संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि आसन यह तय करता है कि प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या नहीं और अगर स्वीकार किया जाए तो कौन से नियम के तहत स्वीकार किया जाए।

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