नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार,सुप्रीम कोर्ट के जजों की हाईकोर्ट के जज के साथ लगभग एक घंटे बहस की.बहस के दौरानसुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे एस खेहर के नेतृत्व में सात जजों वाली पीठ ने सुझाव दिया कि न्यायमूर्ति कर्णन अगर मानते हैं कि वह जवाब देने के लिए ‘‘मानसिक तौर पर चुस्त-दुरुस्त नहीं हैं’’ तो वह मेडिकल रिकॉर्ड पेश कर सकते हैं। मूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय ने कहा- मुझे कोई चिकित्सीय प्रमाणपत्र दिखाने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जस्टिस करनन को कहा कि चार हफ्तों में हलफनामे के जरिए दो सवालों के जवाब दें, क्या वे 20 जजों के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को सही मानने को तैयार हैं या वे शिकायत वापस लेने और कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस करनन के न्यायिक और प्रशासनिक कामों पर लगी रोक को हटाने से इनकार किया है.
सात जजों वाली पीठ ने कहा कि जज होने के बावजूद आपको कानूनी प्रक्रिया नहीं पता. हमने आपको जमानती वारंट जारी किए आरोपी के तौर पर नहीं बल्कि आपका पक्ष जानने के लिए नोटिस किया गया, लेकिन आप कोर्ट नहीं आए. न्यायमूर्ति कर्णन ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि मैं संवैधानिक पद भी संभाल रहा हूं. मेरी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई गई है और मेरा पक्ष सुने बिना ही मेरा काम मुझसे ले लिया गया. उन्होने कहा कि अगर मेरा काम फिर से नहीं दिया गया तो वे कोर्ट में हाजिर नहीं होंगे. चाहे कोई भी सजा दो भुगतने को तैयार हैं. वे जेल जाने को भी तैयार हैं. कोर्ट ने उनके खिलाफ अंसवैधानिक फैसला लिया है. वे कोई आतंकवादी या असामाजिक तत्व नहीं हैं. उन्होंने जजों के खिलाफ शिकायत की वे कानून के दायरे में हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनका काम छीन लिया जिससे मेरा मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया. अगर मेरा काम वापस दिया जाएगा तो मैं जवाब दूंगा. कोर्ट के इस कदम की वजह से मेरा सामाजिक बहिष्कार हो गया है. यहां तक कि मेरा प्रतिष्ठा भी चली गई है.
जस्टिस करनन ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. साथ ही CBI को जांच के आदेश भी दिए थे. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इसे अदालत की अवमानना बताया, जिसके बाद सात जजों की खंडपीठ ने जस्टिस करनन के ख़िलाफ़ कोर्ट के आदेश की अवमानना की कार्रवाई शुरू की. उच्चतम न्यायालय ने अवमानना के एक मामले में पेश नहीं होने पर कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सीएस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था. न्यायमूर्ति कर्णन ने अपने जवाब में आरोप लगाया कि साथी न्यायाधीश उनकी जाति समेत विभिन्न आधारों पर भेदभाव और ‘सामाजिक बहिष्कार’ करते हैं. उन्होंने कहा कि यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी अवमानना का नोटिस जारी कर दिया और उनकी बात सुने बिना ही उनसे उनकी प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकार छीन लिए.
यह आदेश भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अभूतपूर्व है. न्यायमूर्ति कर्णन ने वारंट जारी करने पर शीर्ष अदालत पर पलटवार किया और इसे ‘‘असंवैधानिक’’ करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें दलित होने पर निशाना बनाया जा रहा है.