जानिये मथुरा के प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर और कैसे मनाई जाती है जन्माष्टमी
August 24, 2016
मथुरा, प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर मथुरा के हर क्षेत्र मे हैं और सभी मे अलग-अलग तरह से मनाई जाती है जन्माष्टमी।श्रीधाम वृंदावन आने का सौभाग्य प्राप्त होने पर भी यदि वृंदावन में बांके बिहारी के दर्शन न किए जाएं तो तीर्थ करना अधूरा ही रह जाता है।
बांके बिहारी के मंदिर का निर्माण लगभग संवत् 1921 में हुआ। इस मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास जी के वंशजों के सामूहिक प्रयासों से हुआ। श्री स्वामी हरिदास जी बाल्यकाल से ही संसार से विरक्त थे। वह एक मात्र श्यामा श्याम का ही गुणगान किया करते थे। यमुना के निकट निर्जन स्थान पर युगल छवि में ध्यान मग्न रहा करते थे। उन्होंने 25 वर्षों की अवस्था में विरक्तावेश ले लिया था। आपने जिस स्थान पर युगल छवि का ध्यान किया था वहीं पर श्री विठल विपुल आदि शिष्यों ने बांके बिहारी को भूमि से प्राप्त किया था। आज बांके बिहारी अपनी रूप माधुरी से विश्व के तमाम लोगों को रिझाते हैं। यहां वर्ष में एक ही दिन हरियाली तीज को ठाकुर स्वर्ण हिंडोले में विराजते हैं जिसके दर्शनों को लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। चैत्र मास की एकादशी से श्रावण मास की हरियाली अमावस्या तक प्रतिदिन ठाकुर जी का फूल बंगला सजाया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बांके बिहारी के मंदिर में कोई विशेष आयोजन तो नहीं होते लेकिन यहां जन्माष्टमी का अभिषेक होता है। प्रातः 5 बजे से मंगला आरती के दर्शन होते हैं। यहां की एक विशेषता यह भी है कि बांके बिहारी जी की निकुंज सेवा होने के कारण आरती में कोई शंख घण्टा घडियाल नहीं बजाय जाता बल्कि शान्तभाव में आरती होती है।
गोविन्द देव जी का मंदिर श्रीगोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन में प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर है। उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली में लाल पत्थर का बना प्राचीनतम मंदिर है। वर्तमान स्वरूप में जो मंदिर दिखाई देता है यह भवन औरंगजेब के अत्याचारों एवं क्रूरता का साक्षी है। इसके ऊपर के हिस्से को तोड़ दिया गया था। आकाशचु बी इस मंदिर का निर्माण गौड़ीय गोस्वामी श्री रूप सनातन गोस्वामी के शिष्य जयपुर नरेश श्री मानसिंह ने सवंत् 1647 में कराया था। आतताइयों के आक्रमण करने से पूर्व ही राजा मानसिंह के जयपुर स्थित महल में यहां के श्री विग्रह को स्थानांतरित कर दिया गया था। आज भी जयपुर में गोविंददेव जी राजा के महल में विराजमान है। तत्पश्चात संवत 1877 में पुनः बंगाल के भक्त श्री नंदकुमार वसु ने श्री गोविंददेव के नये मंदिर का निर्माण कराया। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन विधि विधान से पूजा अर्चना अभिषेक का कार्यक्रम होता है।
श्री रंग नाथ जी मंदिर श्री वृंदावन का यह भव्य विशाल मंदिर के सामने वाली मुख्य सड़क पर बना हुआ है। यह दक्षिण भारतीय शैली का अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सेठ श्री राधाकृष्ण, उनके बड़े भाई सेठ लक्ष्मीचंद तथा छोटे भाई सेठ गोविंद दास जी ने कराया। श्री रामानुज स प्रदाय का अति विशाल मंदिर स्थापत्थ कला की दृष्टि से भारत में एक अलग स्थान रखता है। यह मंदिर आकार में बहुत बड़े भूभाग को संजोये हुए है। इसमें पांच परिक्रमाएं हैं। जो ऊंचे-ऊंचे पत्थरों के परकोटों से विभक्त है। भीतरी परिक्रमा में श्री हनुमान जी, श्री गोपाल जी, श्रीनृसिंह जी के श्री विग्रह हैं। यहां एक पुष्करणी भी है जहां वर्ष में एक बार भाद्र पद मास में गजग्राह लीला का प्रदर्शन होता है। चौथे व प्रधानद्वार बैकुण्ठद्वार और नैवेद्य द्वार से तीन विशाल द्वार बने हुए है। इसी में 60 फुट ऊंचा स्वर्णमय विशाल गरूड़ स्त भ (सोने का ख भा जिसे सोने के ख भे का मंदिर भी कहा जाता है।) चैत्र मास में विशाल रथ यात्रा भी निकाली जाती है।
श्रीकृष्ण बलराम मंदिर (इस्कॉन मंदिर) इसका निर्माण श्री एसी भक्तिवेदान्त स्वामी द्वारा स्थापित श्रीकृष्ण भावनात्मक संघ के तत्वाधान में सन् 1975 में हुआ था। प्रभुपाद के अनेक विदेशी कृष्ण भक्तों की देख रेख में सेवा पूजा आदि समस्त व्यवस्थाएं स पन्न होती हैं यह मन्दिर अंग्रेज मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन सुंदर कक्षों में बायी ओर निताई गौरांग महाप्रभु मध्य में श्रीकृष्ण बलराम के अति मनोहारी छवि विराजमान है तो दायीं ओर श्री राधा श्याम सुंदर युगल किशोर सुशोभित हैं। सभी श्री विग्रह अद्भुद वस्त्र आभूषण पुष्प मालाओं तथा मणिमय अलंकारों से श्रृंगारित होकर दर्शकों के मन को आकर्षित करते है। यहां श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भजन कीर्तन तथा प्रसाद वितरण होता है। रात्रि में अभिषेक का कार्यक्रम होता है, लाखों तीर्थ यात्री मंदिर में आते हैं।
मथुरा में द्वारकाधीश मन्दिर मथुरा में असकुण्डा बाजार में स्थित यह मन्दिर सांस्कृतिक वैभवकला और सौंदर्य के लिये अनुपम है। इस मन्दिर का निर्माण सन् 1814-15 में ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने कराया था। इनकी मृत्यु के उपरांत इनकी स पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचंद ने मंदिर के निर्माण को पूर्ण कराया था। 1930 में इस मंदिर की सेवा पूजा पुष्टिमार्गीय वैष्णव आचार्य गोस्वामी गिरधर लाल जी कांकरौली को भेंट स्वरूप दे दिया था। यहां सेवा पूजा अर्चना पुष्टिमार्गीय वैष्णव स प्रदाय के अनुसार ही होती है। श्रावण मास में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां सोने व चांदी से निर्मित हिंडोले को देखने आते है। यहां जन्माष्टमी के दिन 108 सालिगराम का पंचामृत अभिषेक होता है तथा यहां अष्टभुजा द्वारकानाथ के श्रीविग्रह का भी पंचामृत अभिषेक किया जाता है।
श्री कृष्ण जन्म स्थान केशव देव मन्दिर यह मथुरा का एक मात्र पवित्र धार्मिक स्थल है जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी स्थान पर स्थित कंस के कारागार में हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य मंदिर स्थापित है जिसे देखने वर्ष भर लाखों तीर्थ यात्री श्रद्धालु पर्यटक आते हैं। देश-विदेश से लाखों यात्री प्रतिवर्ष तो आते ही है लेकिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां जन्माष्टमी पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहां के विशाल मंच पर रासलीला नाटक, कथा प्रवचन आदि उत्सव नित्य प्रति होते रहते हैं। जन्माष्टमी के दिन रात्रि के 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय श्री विग्रह का पंचामृत अभिषेक होता है। इसके बाद श्रद्धालु नाचते, गाते, कीर्तन करते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण महामना मदन मोहन मालवीय जी की सद्प्रेरणा से जुगल किशोर विड़ला व जय दयाल डालमिया ने कराया था विशाल भागवत भवन का निर्माण भी उन्हीं के द्वारा कराया गया था।