नई दिल्ली, जीवनसाथी के साथ एक-दो बार क्रूरता भरा व्यवहार किया जाना तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने पति को मिली तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया और कहा कि इस आधार पर तलाक नहीं मांगा जा सकता कि दंपती में से किसी एक ने एक-दो बार साथी या उसके परिवार के प्रति क्रूरता दिखाई हो।
जस्टिस आरके अग्रवाल और ए एम साप्रे ने वर्षों पहले की घटनाओं को तलाक का आधार न बनाए जाने की बात कही। कोर्ट ने यह फैसला क्रूरता के आधार पर तलाक लिए जाने के दिल्ली के एक दंपती के केस में सुनाया। करीब एक दशक पहले संजय सिंह नाम के याची को ट्रायल कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक दिलवा दिया था, जिसे पत्नी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए तलाक की डिक्री की पुष्टि की, जिसे पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बेंच ने कहा कि याचिका दाखिल करने से 8-10 साल पहले हुई घटनाओं को तलाक का आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने पाया कि क्रूरता का आरोप लगाए जाने के बाद भी दंपती एकसाथ रह रहा था, इसका अर्थ था कि दोनों में समझौता हो गया है। कोर्ट ने हाल की उस घटना को संज्ञान में लेने से इनकार कर दिया जिसके मुताबिक पत्नी ने दफ्तर के सहकर्मियों के सामने पति को झिड़का था। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ने इस केस के अहम बिंदु पर ध्यान देने में चूक की, इसलिए उन्होंने तलाक का फैसला दिया।