नयी दिल्ली, भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर के साहित्य के करीब पंद्रह हज़ार पृष्ठ अब तक प्रकाशित हो चुके हैं लेकिन अब भी उनके तीन से चार हज़ार पृष्ठ न तो प्रकाशित हुए हैं और न ही कहीं संग्रहीत हुए हैं। इन पन्नो के प्रकाशन से अंबेडकर के जीवन दर्शन के बारे में देश को नयी जानकारी मिल सकेगी।
यह कहना है राज्यसभा के पूर्व मनोनीत सदस्य एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री तथा दलित चिन्तक प्रो.भालचंद्र मुंगेकर का जिन्होंने बाबा साहब की श्रेष्ठ रचनाओं का एक संचयन सम्पादित किया है जिसका कई भाषाओं में अनुवाद होगा ताकि देश भर के लोग उनके विचारों से अवगत हो सके। मुंगेकर ने बाबा साहब की रचनाओं के पंद्रह हज़ार पेजाें में से 436 पेजों का यह संचयन अंग्रेजी में निकाला है। रूपा पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित इस संचयन में 14 अध्याय हैं और यह पहला संचयन है। मुम्बई विश्विद्यालय के कुलपति रह चुके मुंगेकर ने अम्बेडकर जयन्ती के मौके पर एक भेंटवार्ता में कहा कि सरकार अम्बेडकर की 125 वीं जयन्ती मना रही है उसे इन अप्रकाशित एवं असंग्रहित पेजों को जनता के सामने लाना चाहिए । उन्होंने कहा कि अंबेडकर के विचार बड़े क्रांतिकारी थे और वे समाज और राजनीति के ढांचे को बदलना चाहते थे। उन्होंने इस संचयन में 1947-48 में ही कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वह पूंजीपतियों से चंदे लेती है।बाबा साहब का मानना था कि अगर राजनीतिक दल चुनाव के लिए इसी तरह चंदा लेंगे तो वे जनता का भला कैसे करेंगे लेकिन आज तो कार्पोरेट द्वारा चंदे की सीमा को ही हटाया जा रहा है।