लखनऊ, वयोवृद्ध साहित्यकार मुद्राराक्षस का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। सोमवार दोपहर में उनकी तबीयत बिगड़ी। उन्हें ट्रामा सेन्टर ले जाया गया लेकिन रास्ते में ही उनका निधन हो गया। 83 साल के मुद्राराक्षस काफी समय से बढ़ती उम्र में होने वाली तकलीफों से ग्रसित थे। कुछ समय पूर्व भी उन्हें सीने में दर्द की शिकायत और तेज बुखार होने के कारण पहले बलरामपुर अस्पताल, फिर केजीएमयू में भर्ती में कराया गया था। जहां कई दिनों तक उनका इलाज चला था। वयोवृद्ध साहित्यकार मुद्राराक्षस के निधन के समाचार से साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं मे शोक छा गया। सोशल मीडिया पर लोगों ने वयोवृद्ध साहित्यकार को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।
आपका जन्म 21 जून 1933 को लखनऊ के ग्राम – बेहटा के ओबीसी परिवार मे हुआ। साहित्य के अलावा समाज और सियासत से भी आपकी नातेदारी रही , साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे हैं। मुद्राराक्षस अकेले ऐसे लेखक रहे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया। विश्व शूद्र महासभा द्वारा ‘शूद्राचार्य’ और अंबेडकर महासभा द्वारा उन्हें ‘दलित रत्न’ की उपाधि प्रदान की गईं। आप संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये। मुद्राराक्षस के साहित्य का अंग्रेजी सहित दूसरी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
मुद्राराक्षस ने 10 से ज्यादा नाटक, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, तीन इतिहास किताबें और पांच आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी किया। आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंडविधान, हस्तक्षेप आपकी मुख्य कृतियां हैं।बाल साहित्य मे सरला, बिल्लू और जाला आपकी चर्चित रचनायें हैं। उन्होंने नयी सदी की पहचान – श्रेष्ठ दलित कहानियाँ का और ज्ञानोदय और अनुव्रत जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है। 15 सालों से भी ज्यादा समय तक वे आकाशवाणी में एडिटर (स्क्रिप्ट्स) और ड्रामा प्रोडक्शन ट्रेनिंग के मुख्य इंस्ट्रक्टर रहे हैं।