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नासूर बनती जा रही है ब्रज के मन्दिरों में भेट पूजा की ठेका प्रणाली

मथुरा, ब्रज के कई मन्दिरों में आपसी विवादों के कारण सेवा पूजा की चल रही ठेका प्रणाली नासूर बनती जा रही है। इस प्रणाली से मन्दिरों की आमदनी तो बढ़ रही है मगर तीर्थयात्रियों का दोहन हो रहा है।

इस बार अकेले गोवर्धन के पांच मन्दिरों का ठेका लगभग सवा छह करोड़ में उठा है। यह ठेका केवल एक माह का है। इस ठेके से होने वाली आमदनी केवल बैंक में जमा हो रही हैं। इसका इस्तेमाल न तो मन्दिर में हो रहा है और ना ही तीर्थयात्री सुविधा में प्रयोग किया जा रहा है और ना ही गोवर्धन के विकास में प्रयोग की जा रही है। इतनी अधिक धनराशि का ठेका होने के बावजूद मन्दिर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को न तो प्रसाद मिल रहा है ना ही तीर्थयात्रियों के लिए कोई नई व्यवस्था की गई है। यही नही इस भारी भरकम राशि को कुछ अंश भी कौशिक परिवार के सेवायतों को नही मिल पा रहा है तथा वे एक प्रकार गाइड बनकर रह गए हैं।

कौशिक समुदाय के राकेश कौशिक ने बताया कि उनके पूर्वजों ने जब गोवर्धन में दानघाटी मन्दिर बनवाया था तो उन्होंने सोंचा था कि इस मन्दिर के सहारे ही उनके बच्चे पल जाएंगे लेकिन धीरे धीरे परिवार बडे होते गए और आपस में वैचारिक मतभेद होते गए। गोविन्दा पुरोहित के समय कौशिक परिवार न केवल दो भागों में बंट गए बल्कि कुछ राजनीतिज्ञों ने भी इसे हवा दी, नतीजन मामला निपटारे के लिए अदालत पहुंच गया। उसके बाद से आज तक मामला नही सुलझा तथा दोनो ही पक्ष अपनी अपनी शर्तों पर ही समझौता करना चाहते हैं।

उधर, अदालत ने दोनो पक्षों के विवाद को देखते हुए सेवा का ठेका देना शुरू किया तो गोवर्धन आनेवाले तीर्थयात्रियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। जहां पहले मुड़िया पूनो में मुश्किल से दो लाख तीर्थयात्री गोवर्धन की परिक्रमा करते थे वहीं अब एकादशी से पूर्णिमा तक तो हर महीने मुड़िया पूनो जैसी भीड़ इकट्ठा होने लगी है जिसके कारण मन्दिर की सेवा पूजा के ठेके की राशि बढ़ती जा रही है तथा हर महीने यह एक करोड़ तक पहुंच गई है। बीच में यदि जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गोवर्धन पूजा जैसे त्योहार पड़ जाते हैं तो ठेके की राशि और बढ़ जाती है। अधिक मास पड़ने के कारण इस बार यह राशि दूने से भी अधिक हो गई है।

रामानन्द आश्रम के महन्त शंकर लाल चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार दानघाटी मन्दिर का सेवा भेंट का ठेका दो करोड़ 30 लाख में दीपू पुरोहित ने, मुकुट मुखारबिन्द का एक करोड़ 99 लाख में कन्हैया शर्मा ने, महरगोकुल मन्दिर का सेवा भेंट का ठेका कपिल बौहरे ने 79 लाख रूपये का, लक्ष्मीनारयण मन्दिर बड़ा बाजार का ठेका धीरज कौशिक ने 19 लाख 12 हजार में लिया है। इसी श्रंखला में मुखारबिन्द मन्दिर जतीपुरा का सेवा भेंट का ठेका 92 लाख में कन्हैया ने लिया है।

इन मन्दिरों की सेवा भेंट का ठेका केवल उस परिवार के ही लोग ले सकते हैं जिनके पूर्वजों ने इन मन्दिरों का निर्माण कराया था। हरगोकुल मन्दिर ही ऐसा मन्दिर है जिसे मुकुट मुखारबिन्द मन्दिर की धनराशि से एक तत्कालीन जज के प्रयास से बनवाया गया था।

समाजसेवी नारायण तिवारी ने बताया कि पहले ठेके की बोली बोलने वाले आधा दर्जन से अधिक होते थे लेकिन ठेके की राशि बढ़ने से इनकी संख्या में कमी होती गई और यहां तक कि चार पांच लोग मिलकर भी अब ठेका नही ले पा रहे है। इसका कारण ठेके की आधी राशि मन्दिर में सेवा पूजा शुरू करने के पहले जमा करना बताया जाता है। कोरोना के पहले तक तीन लोग बोली बोल रहे थे मगर ठेके की राशि लगातार बढ़ने के कारण अब दो परिवार या उनके रिश्तेदार ही रह गए हैं। वर्तमान में इस मन्दिर की व्यवस्था के लिए भले सात आदमियों की टीम बना दी गई हो लेकिन कोई नई व्यवस्था शुरू करने के पहले उन्हें भी अदालत से आदेश लेना होता है।

यही हाल गोवर्धन के प्रमुख मन्दिरों मुखारबिन्द मन्दिर,मुकुट मुखारबिन्द मन्दिर, हरगोकुल मन्दिर एवं लक्ष्मीनारायण मन्दिर का है वहां पर भी सेवा का ठेका उठने के कारण बोली हर महीने बढ़ती ही जा रही है। यह बढ़ी राशि भक्तों से ही निकाली जाती है और इसके लिए दीपक जलाने के लिए एक कनस्तर घी की मांग से लेकर अन्य तरीके अपनाना सेवायत पुजारी की मजबूरी बन गई है क्योंकि वह इतनी भारी भरकम राशि अपने पास से जमा नही कर सकता है।

समाजसेवी अनूप का मानना है कि जब तक ठेके की बढ़ती राशि पर अंकुश नही लगेगा तब तक इस प्रकार का क्रम चलता ही रहेगा। दिल्ली निवासी सनी ने बताया कि यद्यपि गोवर्धन में तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है पर साधारण यात्री के लिए शाम आठ बजे या अधिकतम नौ बजे के बाद केवल प्राइवेट बसों, मिनी बसों या टाटा मैजिक जैसे वाहन ही उपलब्ध रहते है जो मनमाना किराया वसूलने के बावजूद तीर्थयात्री को सामान की तरह ले जाते हैं। 55 सीटर बस में 100 से अधिक, 35 सीटर मिनी बस में 70 तक टाटा मैजिक मे 15 सवारियों को बैठाकर मनमाना किराया वसूलते हैं और सवारियां अधिक होने पर इन वाहनों की छत का भी प्रयोग सवारी को बैठाने के लिए किया जाता है। इसकी जगह यदि मन्दिरों की ओर से रात आठ बजे बाद वाहन चलने लगें और उनसे सरकारी बस के किराये से कुछ कम किराया लेकर उन्हें वाहन सुविधा दी जाय तो प्राइवेट वाहनों द्वारा यात्रियों का दोहन रूक सकता है। तिरूपति बाला जी में मन्दिर की ओर से स्टेशन से मन्दिर तक जाने के लिए बसें चलती हैं जिनसे या तो किराया नही लिया जाता है या नाम मात्र का किराया लिया जाता है।कुल मिलाकर जब तक ठेके की राशि पर अंकुश नही लगेगा और तीर्थयात्रियों को मन्दिर की ओर से कोई सुविधा नही दी जाती तब तक भेंट पूजा का ठेका अधिक राशि का होने के बावजूद यात्रियों को होनेवाली परेशानी से निजात मिलना मुश्किल है।