नई दिल्ली, रोहित वेमुला आत्महत्या के मामले में गठित एक सदस्यीय न्यायिक आयोग के प्रमुख और इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए.के रूपनवाल ने अपनी 41 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रोहित की मां ने आरक्षण का लाभ लेने के लिए खुद को दलित के रूप में ब्रांडेड किया। रोहित वेमुला को यूनिवर्सिटी हॉस्टल से निकाला जाना सबसे तार्किक फैसला था जो यूनिवर्सिटी ले सकती थी। रूपनवाल के अनुसार 26 वर्षीय रोहित ने भेदभाव के चलते नहीं बल्कि निजी हताशा के कारण आत्महत्या थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी और केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने केवल अपना दायित्व निभाया और हैदराबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन पर कोई दबाव नहीं डाला गया था। रूपनवाल ने अपनी जांच रिपोर्ट अगस्त में जमा कर दी थी। गौरतलब है कि रोहित की आत्महत्या के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय समेत पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे।रूपनवाल ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए 50 से अधिक लोगों से बात की जिनमें से अधिकतर विश्वविद्यालय के टीचर, अधिकारी और अन्य कर्मचारी थे। पूर्व न्यायाधीश ने विश्वविद्यालय के पांच छात्रों और परिसर में आंदोलन चलाने वाली ज्वाइंट एक्शन कमेटी के सदस्यों से भी मुलाकात की। रूपनवाल ने रोहित की जाति की गहराई से पड़ताल करते हुए 12 पन्नों के अपने निष्कर्ष में चार पन्नों में जाति के बारे में जानकारी दी है। जिसके अनुसार अपने बेटे का जाति प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए उसकी मां राधिका ने खुद को माला समुदाय (दलित) का बताया था। रिपोर्ट में राधिका के उस दावे को विचित्र और अविश्वसनीय करार दिया गया है जिसमें कहा गया था कि, उन्हें पालने-पोसने वाले माता-पिता ने बताया था कि उनके जैविक माता-पिता दलित थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर राधिका को उसके जैविक माता-पिता का नाम नहीं बताया गया था तो उन्हें कैसे पता चला कि वो माला जाति की हैं। रिपोर्ट के अनुसार रोहित वेमुला का जाति प्रमाणपत्र पूरी जांच किए बिना दिया गया था और चूंकि उनकी मां माला समुदाय से नहीं आती इसलिए उनका जाति प्रमाणपत्र सही नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया है कि वेमुला कि मां राधिका ने उप्पलापति दानाम्मा नाम के एक व्यक्ति से संपर्क कर खुद का जाति प्रमाणपत्र हासिल किया था जो एक कॉरपोरेटर था जिसके साथ वह डेढ़ साल से ज्यादा समय तक रही थी।