नई दिल्ली, जब देश की जेलों मे छोटे मोटे आरोप मे लोग धन के अभाव मे सही पैरवी न होने के कारण जेलों मे सड़ रहे हों। भारी भरकम फीस चुकाकर बड़े लोग गंभीर आरोपों से भी बरी हो रहें हों एेसे मे भारत के प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर ने आज कहा कि न्याय तक लोगों की पहुंच के रास्ते में धन की सीमा बाधक नहीं बन सकती हैं। हो सकता है कि इस वजह से बुनियादी ढांचे और न्यायाधीशों की कमी हो सकती है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि धन की सीमा न्याय तक पहुंच को हकीकत बनाने के रास्ते में बाधक नहीं हो सकती है। यह पूरी तरह से हमारे संवैधानिक दर्शन के अनुरूप है कि न्याय एक वास्तविकता होनी चाहिए और अगर लोगों को अपने मामलों में फैसले के लिए वर्षों तक प्रतीक्षारत रहना पड़े तो यह वास्तविकता नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति ठाकुर दिल्ली उच्च न्यायालय के 50 साल पूरा होने पर आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। ठाकुर के संबोधन के पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया और बुनियादी ढांचे में सुधार तथा और अधिक न्यायाधीशों की भर्ती के मामले में अपनी सरकार की ओर से समर्थन का आश्वासन दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग, दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी रोहिणी और न्यायमूर्ति बीडी अहमद भी मौजूद थे। प्रधान न्यायाधीश ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायाधीशों को उनकी सत्यनिष्ठा को लेकर लोगों की धारणा के बारे में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए क्योंकि यह देखना अफसोसजनक है कि किसी न किसी स्तर पर कुछ असामान्य घटित हो रहा है जिस वजह से पूरी न्याय प्रणाली की छवि खराब होती है। उन्होंने कहा, मैं समझता हूं कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने काफी उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं नहीं हों, यह सुनिश्चित करने के लिए और बहुत कुछ करने की जरूरत है। मैं सिर्फ उम्मीद करता हूं कि सभी स्तरों पर न्यायाधीश अतिरिक्त सतर्कता बरतेंगे ताकि संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रहे।