नई दिल्ली, पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों का बंद होना किसानों और उनकी खेती पर भारी पड़ सकता है। खरीफ सीजन की उपज की बिक्री और रबी फसलों की बुवाई प्रभावित हो रही है। नगदी संकट में सुधार जल्दी नहीं हुआ तो किसानों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में नोटों की कम आपूर्ति कृषि गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों के बैंकों में नगदी नोटों की आपूर्ति बहुत कम हो रही है। पिछले चार पांच दिनों में बैंकों के एटीएम खाली चल रहे हैं। जबकि बैंकों में अपने पुराने नोटों को नये नोटों से बदलने के लिए भारी भीड़ उमड़ी पड़ी है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के एक डीएम का कहना है कि नोटों को आपूर्ति कम होने से किसानों में थोड़ी बेसब्री जरूर है, लेकिन कोई सरकार की मंशा पर सवा नहीं खड़ा कर रहा है। प्रतापगढ़ के किसान सुनील कुमार सिंह का कहना है कि शादी व अन्य अवसरों पर होने वाले खर्च की मुश्किल पैदा हो गई है। बाकी खेती के लिए खाद, बीज और कीटनाशकों की आपूर्ति कोआपरेटिव सोसाइटी से हो रही है अथवा दुकानदार उधारी पर दे रहे हैं। मऊ के विनोद यादव ने बताया कि धान की खरीद की करने वाले व्यापारी अपनी मनमानी कर रहे हैं। नगदी न होने की वजह से भुगतान के लिए दो से तीन सप्ताह का समय मांग रहे हैं। सब्जी मंडियों में किसान की उपज की मांग कम होने से उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। उपज बिकने के बाद नगद भुगतान का संकट भारी पड़ रहा है। कन्नौज के आलू किसान सुशील कटियार का कहना है कि पैसे के अभाव में अगली फसल प्रभावित हो सकती है। इस समय नगदी की सख्त जरूरत है, जिससे किसान डीजल, खाद, दवा और मजदूरों का भुगतान कर सके। बाजार में सन्नाटा है। बैंकों में भीड़ उमड़ी पड़ी है, लेकिन सरकार के फैसले पर लोगों में गुस्सा नहीं है। लोगों को यकीन है कि आने वाले एक दो सप्ताह में स्थितियां सामान्य हो जाएंगी। बुंदेलखंड के किसान गुलाब सिंह का कहना है कि उनके यहां असिंचित क्षेत्रों में बुवाई पहले ही हो चुकी है। सिंचित वाली खेती अब हो रही है। लेकिन कोई दिक्कत नहीं है। बैंकों से आये एक दो लड़के (बैंकिंग करेसपांडेंट) गांव के लोगों का पुराना नोट बदल गये हैं। हमारे यहां कोई कठिनाई नहीं है।