बहुजन साहित्य महोत्सव : उठे दलित- पिछड़ों के अनछुये मुद्दे
December 17, 2017
जयपुर, शनिवार से शुरू हुआ दो दिवसीय बहुजन साहित्य महोत्सव में देश के कई राज्यों के लेखक, कवि, कलाकार, संस्कृतिकर्मी एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिरकत कर रहें हैं।
बहुजन साहित्य महोत्सव में, जिन मुख्य बिंदुओं पर चर्चा की जा रही हैं उनमे समकालीन साहित्य में बहुजन चेतना, वर्तमान परिवेश में बहुजन की स्थिति, सफाई कर्मियों के हालात, घुमंतू-विमुक्त जातियों के मानव अधिकार, सामाजिक सरोकार, वंचित वर्ग और आदिवासी शामिल हैं। बहुजन साहित्य महोत्सव मे दलित पिछड़े समाज के विकास पर लोग अपने विचार खुलकर रख रहें हैं।
बहुजन साहित्य महोत्सव का आगाज जनपथ यूथ हॉस्टल में हुआ। भारतीय संविधान के चित्र के सामने दीप प्रज्वलित कर इसकी अनूठे तरीके से शुरुआत हुई। पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान एवं अरविंद नेताम ने उद्घाटन अवसर पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर के.सी. घूमरिया, लेखक संभाजी भगत, राजकुमार मल्होत्रा, वरिष्ठ कवि ऋतुराज, पद्मश्री कल्पना सरोज, बहराइच की सांसद सावित्री बाई फुले सहित अनेक बुदिधजीवी मौजूद रहें।
पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने कहा कि आरक्षित वर्ग के लोगों पर साहित्य रचने से पहले उनकी व्यथा, फिर कथा और फिर गाथा को सामने लाना होगा। तब इसे साहित्य में शामिल करने की बात हो। उन्होने साफ तौर पर कहा कि बाबा भीमराम अंबेडकर ने जो समानता की कल्पना की थी, उसे पूरा करने के लिए सरकार को कई और कदम उठाने होंगे। बाबा साहब द्वारा लिखे संविधान का पूरा पालन होने से ही ये संभव होगा।
वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुये कहा कि भाषण से ज्यादा साहित्यिक बातें समाज में असर छोड़ती है। उन्होने आने वाले खतरे के परति सचेत करते हुये कहा कि उदारीकरण में आर्थिक नीतियां रिजर्व केटेगरी के खिलाफ साबित होगी। सरकारी नौकरियों के दरवाजे बंद होगे और प्राइवेट में जगह नहीं मिलेगी। भविष्य में क्या होगा। इस पर चर्चा और चिंतन की जरूरत है। चुनावों में भी प्रतिभावान व्यक्तियों को बड़ी पार्टियां टिकट नहीं देने वाली। ये पार्टियां सिर्फ चमचों को टिकट देगी ताकि कोई विरोध नहीं करें।
प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त , सुबच्चन राम प्रधान ने सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय और देश के सर्वांगीण विकास के लिये जय मीन और जय भीम के एक हो जाने को जरूरी बताया । उन्होने कहा कि यदि 80 प्रतिशत फैसले लेने वाले पदों पर रिजर्व केटेगरी के लोग या इनका दुख-दर्द समझने वाले लोग होंगे तो ये लोग शेष 20 प्रतिशत लोगों के हक और अधिकारों की रक्षा भी करेंगे।